हथुआ गोपाल मंदिर: जिला मुख्यालय से करीब 17 किलोमिटर की दूरी पर हथुआ बजार के बीचों-बीच प्राचीन गोपाल मंदिर स्थित है. यह 165 साल पुराना प्राचिन मंदिर है. इस मंदिर की नींव स्व. महराजा बहादुर राजेंद्र प्रताप शाही की पत्नी महारानी श्याम सुन्दरी ने वर्ष 1850 में रखी थी. इस मंदिर का निर्माण रानी ने स्त्री धन से कराया था.
महारानी मंदिर के में बने हुए पार्क के पास वाली कोठी में रहती थी. हथुआ राज का यह बनाया हुआ गोपाल मंदिर अपने गृह जिले से लेकर बिहार के कई अन्य जिलों तक में प्रसिद्ध है. यहां पर दर्शन करने और इस मंदिर का भव्य नजारा देखने लोग दूर-दूर से आते हैं.
हथुआ बाजार स्थित प्राचीन गोपाल मंदिर 13 बीघा 3 कट्ठा और 14 धुर में फैला हुआ है. यह विशाल मंदिर जिसके सौंदर्य का वर्णन नहीं किया जा सकता है. इस मंदिर में अलग से तीन कोठी है. जो स्थापत्य कला का बेहतरीन नमूना है. वहीं मंदिर परिसर में एक बड़ा तालाब का भी निर्माण किया गया है. लोगों के बैठने के लिए चबूतरे का भी निर्माण कराया गया है.
देवी-देवताओं से घिरा हुआ यह मंदिर दिखने में काफी सुंदर है. इसकी सुंदरता को बढ़ाने के लिए काफी फल-फूल के पौधे लगाए गए हैं. जिससे यहां की हरियाली देखते बनती है. यहां के मुख्य पुजारी आशुतोष तिवारी ने बताया कि इस मंदिर की देख भाल के लिए हथुआ राज की तरफ से 14 से 15 लोगों को रखा गया है. जो इस मंदिर का अच्छे से देखभाल करते हैं. हथुआ राज की तरफ से इस मंदिर पर काफी ध्यान रखा जाता है.
4.50 लाख चांदी के सिक्के से तैयार हुआ था हथुआ गोपाल मंदिर
हथुआ का गोपाल मंदिर अपनी भव्यता के लिए भी जाना जाता है. उस समय इस मंदिर को बनाने में महारानी श्याम सुन्दरी ने लाखों रूपए खर्च किए थे. मंदिर के मुख्य पुजारी आशुतोष तिवारी की माने तो इस मंदिर को बनाने में कुल 4 लाख 50 हजार चांदी के सिक्के खर्च हुए थे. यदि अभी के समय में इसका आकलन किया जाए तो 53 से 54 करोड़ के आस-पास आती है.
इस मंदिर की खूबसूरती को बढ़ाने के लिए उस समय में भी इटली से मार्बल मंगाया गया था तथा बेल्जियम से शीशा मंगाया गया था. गोपाल मंदिर में आकर्षक नक्कासी की गई है. यहां आने वाले भक्त न सिर्फ पूजा-अर्चना करते हैं बल्कि मंदिर की भव्यता को देखकर आश्चर्यचकित रह जाते हैं.
बेल्जियम से मंगाए थे शीशे
हथुआ गोपाल मंदिर के ऊपर छोटे-छोटे 108 गुंबजों में लगे सोने के कलश गुंबज की चोरी साल1984 में हो गई थी. मंदिर के परिसर में तालाब में गंगा यमुना-सरयू सहित विभिन्न नदियों के जल को डालकर भरा गया था. हथुआ गोपाल मंदिर में भगवान श्री कृष्ण की अष्टधातु की मूर्ति का निर्माण हुआ था, वह हथुआ गोपाल मंदिर के दरवाजे और खिड़कियों के शीशे को बेल्जियम से मंगाया गया था. इन शीशे पर इचिंग विधि की ओर से काफी खूबसूरती से कृष्ण की लीलाओं को दर्शाया गया है, जो अभी भी जीवंत लगते हैं
गोपालगंज जिला हमेशा से धार्मिक और ऐतिहासिक मान्यताओं में शामिल रहा है। इस जिले में कई ऐसे ऐतिहासिक स्थल हुए चाहे थावे का दुर्गा मंदिर हो या हथुआ स्थित गोपाल मंदिर। जिले के बीचो-बीच स्थित ऐतिहासिक हथुआ गोपाल मंदिर पिछले 165 वर्षों से लोगों की आस्था का केंद्र बना है। साथ ही साथ प्राचीन हथुआ राज के गौरवशाली अतीत व वैभव को भी समेटे हुए हैं। मंदिर परिसर मव अद्भुत नाकाशी, वास्तुकलाकृतिका बोध कराता है।
यहां आने वाले पर्यटकों को यहां की खूबशुरती खूब लुभाती है। गोपालगंज जिले का नामकरण हथुआ गोपाल मंदिर के नाम पर ही हुआ था। इस मंदिर की नींव हथुआ राज के महाराजा राजेंद्र प्रताप शाही की पत्नी महारानी श्यामसुंदर कुंवर ने वर्ष 1850 में रखी थी। कुल 13 विघा 3 कट्ठा 14 धूर में फैले इस मंदिर को बनाने में 10 साल लगे थे।
लंबे समय बाद 15 अप्रैल 1866 को इस मंदिर में श्री कृष्ण भगवान की मूर्ति स्थापित की गई थी। मंदिर को बनाने में उस जमाने में कुल 4 लाख 50 हजार चांदी के सिक्के खर्च हुए थे। अर्थात् उस खर्च का आकलन वर्तमान समय में करें हथुआ गोपाल मंदिर तो कुल लागत 54 करोड़ आएगी। परिसर में मंदिर के अलावा तीन कोठी, विशाल चबूतरा व तालाब के अलावे मुख्य द्वार है। मुख्य द्वार के छत पर कभी शहनाई बजती थी। इस मंदिर का निर्माण महारानी द्वारा स्त्री धन से किया था।
महारानी मंदिर के बगल में स्थित कोठी में रहती थी। वह 1878 में महारानी के निधन के बाद हथुआ राज ने इस मंदिर को टेकओवर किया था। मंदिर के ऊपर छोटे-छोटे 108 गुंबज में लगे सोने के कलश गुंबज की चोरी वर्ष 1984 में हो गई थी। मंदिर के परिसर में तालाब में गंगा यमुना सरयू सहित विभिन्न नदियों के जल को डालकर भरा गया था।
हथुआ गोपाल मंदिर में भगवान श्री कृष्ण की अष्टधातु की मूर्ति का निर्माण हुआ था वह मंदिर के दरवाजे और खिड़कियों के शीशे को बेल्जियम से मंगाया गया था।इन शीशे पर इचिंग विधि द्वारा काफी खूबसूरती से कृष्ण की लीलाओं को दर्शाया गया है अभी भी जीवंत लगते हैं