अमेरिका दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र और सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति है. नवंबर में यहां राष्ट्रपति चुनाव होना है. ऐसे में दुनिया की नजरें इस चुनाव पर लगी हैं कि अमेरिका का अगला राष्ट्रपति कौन होगा, रिपब्लिकन व पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप या डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार कमला हैरिस. दुनिया की भू-राजनीतिक स्थिति को देखते हुए यह चुनाव बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है. जानिए कैसे चुने जाते हैं
इस वर्ष अमेरिका के शीर्ष पद पर कौन बैठेगा और व्हाइट हाउस पर किसका राज होगा, इसका पता तो नवंबर में होने वाले चुनाव के बाद ही चलेगा. परंतु खराब स्वास्थ्य के कारण वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन के चुनाव से हट जाने और उनकी जगह कमला हैरिस के उम्मीदवार बनने से यह चुनाव और दिलचस्प हो गया है. अभी जानते हैं अमेरिकी चुनावी प्रक्रिया के बारे में.
पांच चरणों की चुनावी प्रक्रिया
अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए होने वाले चुनाव पांच चरणों में संपन्न होते हैं- प्राइमरी व कॉकस, नेशनल कन्वेंशन, इलेक्शन कैंपेनिंग, जनरल इलेक्शन और इलेक्टोरल कॉलेज.
प्राइमरी व कॉकस
देश में होने वाले आम चुनाव में पार्टी प्रत्याशी के रूप में नामित होने से पहले उम्मीदवार देशभर में कॉकस और प्राइमरी चुनाव के जरिये अपनी पार्टी के नामांकन की लड़ाई लड़ते हैं. चूंकि अमेरिकी संविधान में प्राइमरी के बारे में कोई दिशा-निर्देश नहीं है, इसलिए इस चुनाव का निर्धारण पार्टी और राज्य के कानूनों द्वारा किया जाता है.
प्राइमरी चुनाव : प्राइमरी चुनाव का संचालन राज्य सरकारें करती हैं, न कि पार्टियां. राज्य सरकारें इसका संचालन ठीक उसी तरह करती हैं, जिस तरह वे जनरल इलेक्शन का संचालन करती हैं. इस चुनाव में पार्टी के सदस्य सबसे अच्छे उम्मीदवार के लिए मतदान करते हैं, ताकि वे जनरल इलेक्शन में पार्टी का प्रतिनिधित्व कर सकें. प्राइमरी में चुने गये पार्टी उम्मीदवार जनरल इलेक्शन में एक-दूसरे के विरुद्ध खड़े होते हैं.
कॉकस चुनाव : अमेरिका के अयोवा समेत 16 राज्यों में प्राइमरी की जगह कॉकस प्रणाली के माध्यम से प्रत्याशियों का चुनाव होता है. इस चुनाव का संचालन राजनीतिक पार्टियां करती हैं. यह एक स्थानीय बैठक होती है जहां राजनीतिक दल के पंजीकृत सदस्य संबंधित राज्य की सीमा के भीतर एक शहर, नगर या काउंटी में अपने पसंदीदा पार्टी उम्मीदवार के लिए मतदान करते हैं.
नेशनल कन्वेंशन
प्राइमरी और कॉकस चुनाव संपन्न हो जाने के बाद प्रत्येक राज्य में नेशनल कन्वेंशन होता है, जिसमें पार्टी का नामांकन औपचारिक तौर पर घोषित किया जाता है. कन्वेंशन के दौरान चुने गये प्रतिनिधि पार्टी के एक उम्मीदवार के लिए मतदान करते हैं और जिस उम्मीदवार के पक्ष में ज्यादा प्रतिनिधियों द्वारा मत डाला जाता है उसे पार्टी का नामांकन मिल जाता है. राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के चयन को अंतिम रूप देने के लिए प्रत्येक पार्टी नेशनल कन्वेंशन का आयोजन करती है. प्रत्येक कन्वेंशन में राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का चयन करता है.
इलेक्शन कैंपेनिंग
प्रत्येक राजनीतिक दल द्वारा एक-एक उम्मीदवार चुने जाने के बाद जनरल इलेक्शन की कैंपेनिंग शुरू होती है.
जनरल इलेक्शन यानी पॉपुलर वोट
जनरल इलेक्शन में प्रत्येक राज्य के लोग राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए मतदान करते हैं. पर वास्तविकता में ये मतदाता लोगों के एक समूह के लिए मतदान करते हैं, जिन्हें इलेक्टर्स कहा जाता है. ये इलेक्टर्स इलेक्टोरल कॉलेज के सदस्य होते हैं. राज्यों द्वारा नियुक्त ये इलेक्टर्स राष्ट्रपति पद के उस उम्मीदवार का समर्थन करने का वचन लेते हैं, जिन्हें मतदाताओं का समर्थन प्राप्त होता है.
राष्ट्रपति चुनाव का परिणाम जब घोषित होता है, तो उसमें दो तरह के परिणाम शामिल होते हैं. एक इलेक्टोरल कॉलेज के और दूसरा पॉपुलर वोट के. एक उम्मीदवार द्वारा प्राप्त कुल मत को पॉपुलर वोट कहा जाता है. हालांकि इन मतों से आम चुनाव के विजेता का कोई लेना-देना नहीं होता है. आम चुनाव में किसे विजय मिलेगी, यह ‘इलेक्टोरल कॉलेज’ के मत से तय होता है. इलेक्टोरल कॉलेज के कुल 538 मतों में से 270 मत प्राप्त कर साधारण बहुमत हासिल करने वाला प्रत्याशी राष्ट्रपति चुनाव में विजयी माना जाता है.
इलेक्टोरल कॉलेज
राज्यों की तरफ से राष्ट्रपति के लिए मतदान करने वाले इलेक्टर्स के समूह को आधिकारिक रूप से इलेक्टोरल कॉलेज कहा जाता है. प्रत्येक राज्य में इलेक्टर्स की संख्या, कांग्रेस में उस राज्य के प्रतिनिधित्व (सीनेटर व रिप्रेजेंटेटिव दोनों) के अनुपात में होती है. प्रत्येक राज्य में सीनेटर की कुल संख्या दो ही होती है, जबकि रिप्रेजेंटेटिव की संख्या का निर्धारण संबंधित राज्य की जनसंख्या के आधार पर होता है