कुचायकोट प्रखंड का भोजछापर गांव आज वाद्य यंत्रों की सुर-ताल से झंकृत हो रहा इलाका-2025

कुचायकोट प्रखंड का भोजछापर गांव, जो रमजीता के नाम से भी जाना जाता है. यहां 17वीं सदी में स्थापित महादेव का मंदिर आस्था का प्रतीक है. देश की आजादी के बाद 2005 तक दिन में भी लोग वहां जाने से कतराते थे. तब जंगल पार्टी के आपसी वर्चस्व में यहां बंदूकें गरजती थीं. धरती खून से लाल होती थी. सुबह निकलने वाले शाम को घर सुरक्षित लौट आएं, तो बड़ी बात होती थी.

सरकार बदलने के बाद बदला माहौल

मुंबई से पीयूष कोठारिया का अपहरण कर इसी कुचायकोट प्रखंड का भोजछापर गांव में रखकर करोड़ों की फिरौती वसूली गयी थी. यहां मंदिर में भी अपराधियों और डकैतों की पूजा पहले होती थी. वक्त बदला, सरकार बदली. नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने, तो बदलाव का असर यहां भी दिखने लगा.

रमजीता के निवासी आदित्य पांडेय एमएलसी बने, तो उनका प्रयास फलीभूत हुआ. कर्तानाथ को पर्यटन विभाग ने विकसित करने का निर्णय लिया और यहां लगभग सात करोड़ रुपये खर्च किये. वर्ष 2022 से यहां कला एवं संस्कृति मंत्रालय द्वारा आयोजित बाबा रामेश्वर कर्तानाथ धाम महोत्सव ऐतिहासिक जगह के विकास में एक महत्वपूर्ण कड़ी साबित हुआ.

कलाकारों ने गंगा से प्रीत को जोड़ा

कुचायकोट प्रखंड का भोजछापर गांव महाशिवरात्रि के मौके पर बुधवार को आयोजित महोत्सव में दियारे के हजारों लोगों की भीड़ आनंदित होती रही. यह भीड़ बिना डर-भय के आधी रात तक जमी रही. कलाकार पं. सुनील दुबे, पटना से आयी साकार कीर्ति की टीम, माही जैन व सोनाली की टीम ने बसंत ऋतु में महादेव के दरबार में अपनी प्रतिभा का उम्दा प्रदर्शन कर हर शख्स को आह्लादित करने की कोशिश की.

मन को शांति और दिल को सुकून देने वाले संगीत से लेकर कलाकारों ने गंगा से प्रीत को जोड़ा. वहीं, जीवनदायिनी नारायणी के आंचल में सुर, लय और ताल अंजलि भर-भर कर अर्पित किया. संगीत, गीत और वाद्य ने श्रोताओं को उमंग और उल्लास का एहसास करा दिया.

दियारे में पर्यटन विभाग ने बदला कलेवर

वर्ष 2021 में पर्यटन मंत्रालय द्वारा मंदिर प्रांगण को विकसित किया गया. कुचायकोट प्रखंड का भोजछापर गांव के विकास के लिए पर्यटन मंत्रालय द्वारा एनएच-27 पर तीन भव्य द्वार, मंदिर प्रांगण के पास बहुद्देश्यीय भवन, महिला व पुरुषों के लिए अत्याधुनिक शौचालय,

हाइमास्ट लाइट तथा मंदिर के सौंदर्यीकरण समेत अन्य योजनाओं के लिए छह करोड़ 36 लाख रुपये की राशि भी खर्च की जा चुकी है. यहां से एक किमी की दूरी पर सिपाया सैनिक स्कूल, इंजीनियरिंग कॉलेज, पॉलिटेक्निक कॉलेज, कृषि विज्ञान केंद्र के होने से छात्रों के लिए यह पर्यटन स्थल साबित हुआ है.कुचायकोट प्रखंड का भोजछापर गांव

कर्तानाथ मंदिर के इतिहास को भी जान लीजिए

कुचायकोट प्रखंड का भोजछापर गांव में 17वीं सदी के अंतिम दौर में वर्तमान रामेश्वर शिव मंदिर स्थापित हुआ था. कर्तानाथ धाम के पास ही नारायणी नदी बहती थी. बाबा कर्तानाथ एक तरुण तपस्वी के रूप में जिले की पश्चिमी सीमा पर बहने वाली छोटी गंडकी के किनारे से भ्रमण करते हुए यहां पहुंचे.

मात्र एक लंगोटधारी कर्ता बाबा के शरीर पर यज्ञोपवीत होने के कारण उनका ब्राह्मण शरीर होना निश्चित था. तपस्या में लीन तपस्वी की आभा लोगों को आकर्षित कर रही थी. उनके द्वारा यहां मंदिर की स्थापना की गयी.

हथुआ राज ने बाढ़ की तबाही से बचने के लिए कराया था यज्ञ

अंग्रेजों के जमाने में नारायणी नदी का पानी यहां तबाही मचाता था. तब हथुआ राज द्वारा देवरिया के बुढ़ियाबारी से पं. काशी नाथ तिवारी को बुलाया गया. उनके द्वारा यज्ञ कराया गया. यज्ञ का प्रभाव हुआ कि नारायणी नदी अपनी धारा बदलकर तीन किमी दूर चली गयी. उसके बाद हथुआ राज की ओर से आचार्य काशी नाथ तिवारी को लौटने नहीं दिया गया.

काशी नाथ तिवारी को बसने के लिए घर बनाकर दिया गया, जो बाद में घरदान गांव के रूप में ख्याति प्राप्त किया. आज काशीनाथ तिवारी की छठी पीढ़ी के पं. मंजीत त्रिपाठी का परिवार मंदिर के ट्रस्टी सदस्य में शामिल है.कुचायकोट प्रखंड का भोजछापर गांव

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