लेटरल भर्ती : केंद्र सरकार में कुछ उच्च व विशेषज्ञ पदों पर नियुक्ति के लिए निकली भर्ती राजनीतिक गर्मी का शिकार हो गई। यूपीएससी ने इस प्रक्रिया के तहत 24 मंत्रालयों में संयुक्त सचिवनिदेशक और उप सचिव के 45 प्रशासनिक पदों पर विशेषज्ञों की नियुक्ति को विज्ञापन को रद्द कर दिया है।उनका कहना था कि इस भर्ती प्रक्रिया में एससी-एसटी और ओबीसी आरक्षण का प्रविधान नहीं है।
केंद्र सरकार में कुछ उच्च व विशेषज्ञ पदों पर नियुक्ति के लिए निकली भर्ती राजनीतिक गर्मी का शिकार हो गई। यूपीएससी ने इस प्रक्रिया के तहत 24 मंत्रालयों में संयुक्त सचिव,निदेशक और उप सचिव के 45 प्रशासनिक पदों पर विशेषज्ञों की नियुक्ति को विज्ञापन को रद्द कर दिया है।
17 अगस्त को इसके लिए विज्ञापन जारी करने के बाद से ही कांग्रेस समेत विपक्षी दल ही नहीं बल्कि कुछ सहयोगी दलों ने भी आरक्षण को लेकर सवाल खड़ा किया था। उनका कहना था कि इस भर्ती प्रक्रिया में एससी-एसटी और ओबीसी आरक्षण का प्रविधान नहीं है। मंगलवार को चौंकाने वाले घटनाक्रम में केंद्रीय कार्मिक मंत्री डा. जितेंद्र सिंह ने यूपीएससी की प्रमुख प्रीति सूडान को चिट्ठी लिखकर कहा कि प्रधानमंत्री चाहते हैं कि कोई भी भर्ती सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के आधार पर हो।
लेटरल भर्ती : यूपीएससी ने भर्ती विज्ञापन ले लिया वापस
लेटरल भर्ती चूंकि यह सारी भर्ती एकल पदों के लिए हैं और इसमें आरक्षण लागू नहीं हो सकता है इसलिए इसे वापस लेने का आग्रह है। तत्काल बाद यूपीएससी ने भर्ती विज्ञापन वापस ले लिया। जब अलग अलग विभागों के लिए एक एक पद की भर्ती होती है तो उसे एकल पद वैकेंसी कहा जाता है। जितेंद्र सिंह के अनुसार, 2014 के पहले लेटरल एंट्री वाली ज्यादातर नियुक्तियां बिना किसी तय प्रक्रिया के की गई थीं, जिनमें जमकर पक्षपात किया गया था, लेकिन मोदी सरकार ने इस प्रक्रिया को संस्थागत स्वरूप दिया है। जितेंद्र सिंह ने चिट्ठी में लिखा कि पीएम मोदी के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण सामाजिक न्याय के ढांचे की एक मूलभूत अनिवार्यता है।
इसका उद्देश्य ऐतिहासिक अन्याय को समाप्त करना और समानता को बढ़ावा देना है। चूंकि यह एकल पदों पर विशेषज्ञों की नियुक्ति की प्रक्रिया है, इसलिए इसमें आरक्षण की व्यवस्था का प्रविधान नहीं है। इस पहलू की समीक्षा की जरूरत है और इसमें सामाजिक न्याय पर पीएम के फोकस के अनुरूप सुधार किया जाएगा।
जितेंद्र ¨सह ने लेटरल भर्ती पर आक्रामक रुख दिखाने वाली कांग्रेस को आईना दिखाते हुए कहा कि उसके शासनकाल में इस तरह की तमाम हाई प्रोफाइल नियुक्तियां की गईं जिसके तहत मंत्रालयों में सचिव और आधार संस्था के प्रमुख तक बनाए गए, लेकिन उनमें आरक्षण की चिंता नहीं की गई। संप्रग सरकार के समय राष्ट्रीय सलाहकार परिषद एक तरह से तत्कालीन पीएम मनमोहन ¨सह के ऊपर काम कर रही थी, लेकिन इसके सदस्यों की नियुक्ति में एससी-एसटी और ओबीसी आरक्षण की कोई परवाह नहीं की गई थी।
प्रशासनिक तंत्र में लेटरल भर्ती से आशय भारतीय प्रशासनिक सेवा जैसे सरकार के सर्विस कैडर से बाहर किसी विषय के विशेषज्ञों को नीति-निर्धारण करने वाले शीर्ष पदों पर नियुक्ति देना है। वास्तव में इसकी सिफारिश कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार के समय बनाए गए दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने 2005 में दी गई अपनी रिपोर्ट में की थी, लेकिन संप्रग सरकार ने इसके अनुरूप कोई नियुक्ति नहीं की।
मोदी सरकार ने लेटरल भर्ती वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता वाले उस आयोग की इस अहम सिफारिश पर 2018 में अमल की शुरुआत की। इसी कड़ी के तहत जब गत सप्ताह 45 पदों पर भर्ती का विज्ञापन निकाला गया तो लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने इसमें एससी-एसटी और ओबीसी आरक्षण न किए जाने को लेकर मोदी सरकार के इरादों पर सवाल खड़े किए।
कांग्रेस के साथ ही सपा, राजद और बसपा जैसे दलों ने भी कई राज्यों में विधानसभा चुनाव के सिलसिले की शुरुआत के साथ ही इसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा लेटरल भर्ती बनाने की कोशिश की। सरकार के सहयोगी दलों-जदयू और चिराग पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी ने भी इस मामले में विपक्षी दलों जैसा रुख अख्तियार कर लेटरल भर्ती फैसले का विरोध किया। लोजपा के चिराग पासवान ने तो यहां तक कह दिया कि किसी किंतु परंतु के बिना नियुक्ति की सभी प्रक्रियाओं में आरक्षण की व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए।