बंगाल में डॉक्टर से दु्ष्कर्म के बाद हत्या मामले को लेकर पूरे देश में आक्रोश है। इस मामले को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई, सुनवाई के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने सालों से महिला डॉक्टरों पर क्रूर हमलों को उजागर करने के लिए 1973 की अरुणा शानबाग घटना का संदर्भ दिया।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, आज के युग में महिला डॉक्टरों को अधिक निशाना बनाया जाता है, उन्होंने आगे कहा, जैसे-जैसे महिलाएं कार्यबल में शामिल होती हैं, तभी एक और रेप की घटना सामने आ जाती है। उन्होंने आगे कहा, अरुणा शानबाग के साथ अस्पतालों के अंदर ही दरिंदगी हुई गई थी, जो एक परीक्षण या इच्छामृत्यु का मामला बन गया।
डॉक्टर से दु्ष्कर्म : रात में बेहरमी से हुआ था हमला
अरुणा केईएम अस्पताल में 25 साल की नर्स थीं, जिस चिकित्सा संस्थान में वह 1967 में सर्जरी विभाग में शामिल हुई थीं। उनकी सगाई उसी अस्पताल में डॉक्टर संदीप सरदेसाई से हुई थी और 1974 की शुरुआत में उनकी शादी होने वाली थी। हालांकि, 27 नवंबर, 1973 की रात को, एक वार्ड अटेंडेंट सोहनलाल भरत वाल्मिकी ने उन पर बेरहमी से हमला किया था। उसके साथ डॉक्टर से दु्ष्कर्म किया और फिर कुत्ते की जंजीर से उसका गला घोंट दिया। हमले ने अरुणा के मस्तिष्क को गंभीर क्षति पहुंचाई, जिससे वह लगातार अपंग की अवस्था (पीवीएस) में चली गई, इसके बाद वह करीब 42 सालों तक अस्पताल के वार्ड में एक बिस्तर पर लाश बनकर पड़ी रही।
सुप्रीम कोर्ट से की इच्छामृत्यु की मांग
अरुणा उस वक्त राष्ट्रीय बहस का केंद्र बन गईं जब पत्रकार पिंकी विरानी ने 2011 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इच्छामृत्यु की इजाजत मांगी। पत्रकार पिंकी विरानी ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर अरुणा के लिए इच्छामृत्यु की अनुमति मांगी थी। पिंकी ने अरुणा की इस दर्दनाक कहानी को एक किताब का शक्ल दिया है।
42 सालों तक थी जिंदा लाश; कोलकाता डॉक्टर से दु्ष्कर्म मामले पर CJI ने कोर्ट में किया जिक्र : अरुणा पर लिखी गई थी किताब
उन्होंने अरुणा के बारे में पिंकी विरानी की किताब, जिसका शीर्षक ‘अरुणाज़ स्टोरी’ है में जिक्र किया। सुप्रीम कोर्ट ने 7 मार्च, 2011 को दिए गए एक ऐतिहासिक फैसले में, सक्रिय इच्छामृत्यु की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि अरुणा ब्रेन डेड नहीं थी और वह कुछ चीजों पर रिस्पॉन्स करती थी, जैसा कि अस्पताल के कर्मचारियों ने देखा था।