छठ पूजा, जिसे छठ महापर्व या डाला छठ के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म का एक प्रमुख और प्राचीन त्योहार है, जो सूर्य देव और छठी माई (उषा या प्रकृति देवी) की आराधना के लिए मनाया जाता है। वर्ष 2025 में छठ पूजा 26 अक्टूबर से 29 अक्टूबर तक मनाई जाएगी, जो चार दिनों का कठिन व्रत और भक्ति का उत्सव है।
मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल में मनाया जाने वाला यह पर्व प्रकृति के प्रति कृतज्ञता, पवित्रता और अनुशासन का प्रतीक है। इस लेख में हम छठ पूजा के अद्भुत महत्व, रोचक इतिहास, कथा, पूजा विधि, परंपराओं, क्षेत्रीय विविधताओं, आधुनिक संदर्भों और इससे जुड़े अन्य पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे। यदि आप छठ पूजा 2025 की तिथियां, मुहूर्त या पूजा सामग्री की जानकारी खोज रहे हैं, तो यह लेख आपके लिए उपयोगी साबित होगा। छठ पूजा न केवल धार्मिक है, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण, महिलाओं की भूमिका और सामाजिक एकता का भी संदेश देती है।
छठ पूजा का परिचय: एक प्राचीन और पवित्र महापर्व
छठ पूजा, जिसे छठ महापर्व, डाला छठ, या सूर्य षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म का एक प्राचीन, पवित्र और अनुशासित त्योहार है, जो सूर्य देव और छठी माई (उषा या प्रकृति देवी) की आराधना के लिए मनाया जाता है। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को अपने चरम पर होता है, लेकिन यह चार दिनों का उत्सव है, जो भक्ति, पवित्रता और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है। वर्ष 2025 में छठ पूजा 26 अक्टूबर से 29 अक्टूबर तक मनाई जाएगी। यह पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, और नेपाल में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है, लेकिन अब यह भारत के अन्य हिस्सों और विश्व भर में बसे प्रवासी समुदायों में भी लोकप्रिय हो रहा है।
छठ पूजा का मूल उद्देश्य सूर्य की जीवनदायिनी ऊर्जा और छठी माई से स्वास्थ्य, समृद्धि, और संतान की रक्षा के लिए प्रार्थना करना है। यह व्रत अपनी कठिनता और अनुशासन के लिए जाना जाता है, जिसमें व्रती (व्रत रखने वाले) 36 घंटों तक निर्जला उपवास करते हैं और नदी या जलाशय के किनारे सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। यह पर्व न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक एकता, और महिलाओं की सशक्त भूमिका को भी रेखांकित करता है। इस लेख में छठ पूजा के परिचय, इसके ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व, और आधुनिक संदर्भ पर प्रकाश डाला गया है।

छठ पूजा की उत्पत्ति और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
छठ पूजा की जड़ें प्राचीन वैदिक काल से जुड़ी हैं, जब सूर्य उपासना भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा थी। सूर्य को जीवन, ऊर्जा, और स्वास्थ्य का प्रतीक माना जाता था, और उनकी पूजा वेदों में वर्णित है। छठ पूजा का उल्लेख महाभारत और रामायण जैसे महाकाव्यों में भी मिलता है। महाभारत में द्रौपदी और पांडवों ने छठ व्रत रखकर अपनी कठिनाइयों को दूर किया था, जबकि रामायण में माता सीता ने लंका विजय के बाद सूर्य पूजा और छठ व्रत किया था।
ऐतिहासिक दृष्टि से, छठ पूजा का विकास पूर्वी भारत, विशेषकर मिथिला क्षेत्र (बिहार और नेपाल) में हुआ। मध्यकाल में यह पर्व बिहार और झारखंड के ग्रामीण और शहरी समुदायों में और अधिक लोकप्रिय हुआ। छठी माई, जिन्हें प्रकृति और संतान की रक्षक माना जाता है, इस पर्व का केंद्रीय हिस्सा हैं। यह पूजा महिलाओं द्वारा बड़े समर्पण के साथ की जाती है, जो परिवार की समृद्धि और स्वास्थ्य के लिए व्रत रखती हैं।
छठ पूजा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
छठ पूजा का धार्मिक महत्व सूर्य देव और छठी माई की पूजा में निहित है। सूर्य को जीवन का आधार माना जाता है, क्योंकि वे प्रकाश, ऊर्जा, और स्वास्थ्य प्रदान करते हैं। छठी माई, जिन्हें उषा (सूर्य की किरणें) या प्रकृति की देवी माना जाता है, संतान की रक्षा और परिवार की खुशहाली का प्रतीक हैं। यह पूजा हमें प्रकृति के प्रति कृतज्ञता और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती है।
- धार्मिक महत्व: छठ पूजा का व्रत अत्यंत कठिन है, जिसमें व्रती बिना अन्न और जल के सूर्य को अर्घ्य देते हैं। यह अनुशासन, भक्ति, और आत्म-संयम का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि यह व्रत पापों का नाश करता है और स्वास्थ्य, धन, और संतान सुख प्रदान करता है।
- सांस्कृतिक महत्व: छठ पूजा सामुदायिक एकता को बढ़ावा देती है। नदी किनारे सामूहिक पूजा, लोकगीत, और भोज इस पर्व को सामाजिक उत्सव बनाते हैं। यह पर्व बिहार और झारखंड की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा है, और इसके लोकगीत और परंपराएं मिथिला संस्कृति को जीवित रखते हैं।
- महिलाओं की भूमिका: छठ पूजा में महिलाओं की सशक्त भूमिका है। वे व्रत रखती हैं, पूजा का आयोजन करती हैं, और सामुदायिक गतिविधियों में नेतृत्व करती हैं, जो नारी शक्ति को दर्शाता है।
छठ पूजा की तिथियां और अवधि (2025)
छठ पूजा चार दिनों का पर्व है, जिसमें प्रत्येक दिन का विशेष महत्व है:
- नहाय खाय (26 अक्टूबर 2025): पहला दिन, जिसमें व्रती स्नान करते हैं और शुद्ध भोजन (जैसे लौकी की सब्जी और दाल-चावल) ग्रहण करते हैं।
- लोहंडा/खरना (27 अक्टूबर 2025): दूसरा दिन, जिसमें व्रती दिनभर उपवास करते हैं और शाम को गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद बनाते हैं।
- संध्या अर्घ्य (28 अक्टूबर 2025): तीसरा दिन, जिसमें सूर्यास्त के समय सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। यह निर्जला व्रत का हिस्सा है।
- उषा अर्घ्य और पारण (29 अक्टूबर 2025): चौथा दिन, जिसमें सूर्योदय के समय सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और व्रत का पारण (व्रत तोड़ना) किया जाता है।
2025 में संध्या अर्घ्य का शुभ मुहूर्त 28 अक्टूबर को शाम 5:30 बजे से 6:00 बजे तक और उषा अर्घ्य का मुहूर्त 29 अक्टूबर को सुबह 6:30 बजे से 7:00 बजे तक है।
छठ पूजा का आधुनिक संदर्भ
आधुनिक युग में, छठ पूजा का महत्व और बढ़ गया है। यह पर्व पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक एकता को प्रोत्साहित करता है। नदियों और जलाशयों के किनारे पूजा करने की परंपरा हमें जल संरक्षण और स्वच्छता की याद दिलाती है। लोग अब इको-फ्रेंडली सामग्रियों, जैसे बांस की सूप और मिट्टी के बर्तनों, का उपयोग कर रहे हैं। सोशल मीडिया और ऑनलाइन स्ट्रीमिंग के माध्यम से छठ पूजा के भजन और पूजा समारोह विश्व भर में साझा किए जा रहे हैं।
छठ पूजा का इतिहास: प्राचीन जड़ें और विकास
छठ पूजा, जिसे डाला छठ, सूर्य षष्ठी, या छठ महापर्व के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म का एक प्राचीन और पवित्र त्योहार है, जो सूर्य देव और छठी माई (उषा या प्रकृति देवी) की आराधना के लिए मनाया जाता है। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को अपने चरम पर होता है, लेकिन यह चार दिनों का उत्सव है, जो मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, और नेपाल में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। छठ पूजा का इतिहास वैदिक काल से लेकर आधुनिक युग तक फैला हुआ है, और इसकी जड़ें प्राचीन सूर्य उपासना, पौराणिक कथाओं, और सांस्कृतिक परंपराओं में गहरे तक समाई हैं। यह लेख छठ पूजा के ऐतिहासिक विकास, प्राचीन जड़ों, और इसके सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभाव पर विस्तार से प्रकाश डालता है, ताकि इस पर्व की समृद्ध विरासत को समझा जा सके।

छठ पूजा की प्राचीन उत्पत्ति: वैदिक और पौराणिक जड़ें
छठ पूजा का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है और यह प्राचीन वैदिक परंपराओं से गहराई से जुड़ा है। वैदिक काल में सूर्य को जीवन, ऊर्जा, और स्वास्थ्य का प्रतीक माना जाता था, और उनकी पूजा एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान थी। ऋग्वेद में सूर्य की स्तुति में कई सूक्त मिलते हैं, जो उनकी जीवनदायिनी शक्ति की प्रशंसा करते हैं। छठ पूजा का आधार सूर्य उपासना में निहित है, जो प्रकृति और पर्यावरण के प्रति सम्मान को दर्शाता है।
वैदिक काल में सूर्य पूजा
वैदिक साहित्य में सूर्य को “आदित्य” के रूप में पूजा जाता था, और उनकी उपासना स्वास्थ्य, समृद्धि, और दीर्घायु के लिए की जाती थी। छठ पूजा की परंपराएं, जैसे नदी में स्नान और सूर्य को अर्घ्य देना, वैदिक यज्ञों और जल पूजा की प्रथाओं से प्रेरित हैं। वैदिक काल में लोग प्रकृति के तत्वों—जल, अग्नि, और सूर्य—की पूजा करते थे, जो छठ पूजा के अनुष्ठानों में आज भी देखा जा सकता है।
पौराणिक कथाओं में छठ पूजा
छठ पूजा का उल्लेख महाभारत और रामायण जैसे हिंदू महाकाव्यों में मिलता है, जो इसकी प्राचीनता को दर्शाता है:
- महाभारत: महाभारत के अनुसार, द्रौपदी और पांडवों ने वनवास के दौरान छठ व्रत रखा था। द्रौपदी ने सूर्य देव और छठी माई की पूजा की, जिसके फलस्वरूप पांडवों को उनकी कठिनाइयों से मुक्ति मिली और अंततः वे हस्तिनापुर के राज्य को पुनः प्राप्त करने में सफल हुए। यह कथा छठ पूजा को संकट निवारण और समृद्धि का प्रतीक बनाती है।
- रामायण: रामायण में माता सीता ने लंका विजय के बाद अयोध्या लौटने पर सूर्य पूजा और छठ व्रत किया था, ताकि अपने परिवार की सुख-समृद्धि और रक्षा के लिए कृतज्ञता व्यक्त कर सकें। यह कथा छठ पूजा को भक्ति और कृतज्ञता से जोड़ती है।
- पुराणों में उल्लेख: पुराणों में छठी माई को प्रकृति की देवी और संतान की रक्षक के रूप में वर्णित किया गया है। एक कथा के अनुसार, राजा प्रियंवद और उनकी पत्नी मालिनी ने संतान प्राप्ति के लिए छठ व्रत किया, जिसके फलस्वरूप उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।
इन कथाओं से पता चलता है कि छठ पूजा की परंपराएं प्राचीन काल से चली आ रही हैं और धार्मिक विश्वासों के साथ-साथ सामाजिक मूल्यों को भी मजबूत करती हैं।
छठ पूजा का ऐतिहासिक विकास
छठ पूजा का विकास समय के साथ-साथ विभिन्न सांस्कृतिक और सामाजिक परिवर्तनों के साथ हुआ है। इसका विकास विशेष रूप से पूर्वी भारत, खासकर मिथिला क्षेत्र (बिहार और नेपाल) में हुआ, जहां यह एक सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान बन गया।
प्राचीन और मध्यकाल
- मिथिला क्षेत्र में लोकप्रियता: मिथिला क्षेत्र में छठ पूजा का विकास वैदिक सूर्य उपासना और स्थानीय लोक परंपराओं के मिश्रण के रूप में हुआ। मिथिला के लोग प्रकृति और नदियों के प्रति गहरी श्रद्धा रखते थे, और छठ पूजा उनकी सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा बन गई। नदियों, जैसे गंगा, कोसी, और गंडक, के किनारे पूजा करने की परंपरा इस क्षेत्र में प्रचलित हुई।
- महिलाओं की भूमिका: छठ पूजा में महिलाओं की सशक्त भूमिका मध्यकाल से और अधिक स्पष्ट हुई। महिलाएं व्रत रखकर परिवार की समृद्धि और संतान की रक्षा के लिए प्रार्थना करती थीं, जिसने इस पर्व को सामुदायिक और पारिवारिक महत्व प्रदान किया।
- लोकगीत और परंपराएं: मध्यकाल में छठ पूजा के साथ लोकगीत और कथाओं का विकास हुआ। मिथिला के लोकगीत, जैसे “केलवा जे फरेला घवद से, ओह पर सुगा मेड़राय” जैसे गीत, इस पर्व की सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाते हैं।
आधुनिक युग में प्रसार
आधुनिक युग में, छठ पूजा का दायरा बिहार और झारखंड से बाहर निकलकर देश और विश्व के अन्य हिस्सों में फैल गया है। प्रवासी बिहारी समुदायों ने इसे दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, और विदेशों में लोकप्रिय बनाया है।
- शहरीकरण और प्रवास: 19वीं और 20वीं सदी में बिहार और उत्तर प्रदेश के लोग रोजगार के लिए अन्य शहरों और देशों में गए, और उन्होंने अपने साथ छठ पूजा की परंपराएं ले गए। आज दिल्ली के यमुना घाट, मुंबई के जुहू बीच, और विदेशों में जैसे अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में छठ पूजा मनाई जाती है।
- महिलाओं का नेतृत्व: छठ पूजा में महिलाओं की भूमिका आधुनिक युग में और सशक्त हुई है। वे न केवल व्रत रखती हैं, बल्कि सामुदायिक आयोजनों का नेतृत्व भी करती हैं।
- सांस्कृतिक पहचान: छठ पूजा बिहार और झारखंड की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक बन गई है। यह पर्व लोकगीत, ठेकुआ जैसे पारंपरिक व्यंजन, और सामुदायिक एकता के माध्यम से सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखता है।

छठ पूजा का सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव
छठ पूजा का इतिहास केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है; इसका सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव भी गहरा है:
- सामुदायिक एकता: छठ पूजा सामुदायिक एकता को बढ़ावा देती है। नदी किनारे सामूहिक पूजा, लोकगीत, और प्रसाद वितरण सभी वर्गों और समुदायों को एकजुट करता है।
- पर्यावरण संरक्षण: यह पर्व नदियों और जलाशयों के महत्व को रेखांकित करता है। सूर्य और जल की पूजा पर्यावरण संरक्षण और स्वच्छता का संदेश देती है।
- महिलाओं की सशक्तिकरण: छठ पूजा में महिलाएं नेतृत्व करती हैं, जो नारी शक्ति को दर्शाता है। व्रत की कठिनता और अनुशासन महिलाओं की दृढ़ता और भक्ति को उजागर करता है।
- लोक कला और संस्कृति: छठ पूजा के लोकगीत, जैसे “उगु न सूरज देव”, मिथिला चित्रकला, और ठेकुआ जैसे व्यंजन इस पर्व को सांस्कृतिक रूप से समृद्ध बनाते हैं।
आधुनिक युग में छठ पूजा का विकास
आधुनिक युग में छठ पूजा ने नई ऊंचाइयों को छुआ है:
- वैश्विक प्रसार: प्रवासी भारतीयों ने छठ पूजा को विश्व भर में लोकप्रिय बनाया है। विदेशों में समुदाय स्थानीय जलाशयों या कृत्रिम घाटों पर पूजा करते हैं।
- इको-फ्रेंडली उत्सव: पर्यावरण जागरूकता के साथ, लोग अब बायोडिग्रेडेबल सामग्रियों, जैसे बांस की सूप और मिट्टी के बर्तनों, का उपयोग कर रहे हैं। नदियों की स्वच्छता पर भी ध्यान दिया जा रहा है।
- सोशल मीडिया और डिजिटल उपस्थिति: छठ पूजा के भजन, लोकगीत, और पूजा समारोह सोशल मीडिया पर साझा किए जाते हैं, जिससे यह पर्व वैश्विक स्तर पर पहुंच गया है। ऑनलाइन स्ट्रीमिंग और वर्चुअल आयोजन भी लोकप्रिय हो रहे हैं।
- राजनीतिक और सामाजिक मान्यता: बिहार और झारखंड में छठ पूजा को सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया है, और सरकारें घाटों की सफाई और सुरक्षा के लिए विशेष व्यवस्था करती हैं।
छठ पूजा का धार्मिक महत्व: सूर्य और छठी माई की आराधना
छठ पूजा का धार्मिक महत्व सूर्य देव और छठी माई से जुड़ा है। सूर्य जीवन ऊर्जा का स्रोत हैं, और छठी माई संतान और स्वास्थ्य की रक्षक हैं। यह पूजा हमें सिखाती है कि प्रकृति की पूजा से जीवन समृद्ध होता है।
धार्मिक दृष्टि से, यह व्रत निर्जला है और सूर्य को अर्घ्य देने से पापों का नाश होता है। जैन और बौद्ध धर्म में भी सूर्य पूजा की परंपराएं हैं। छठ पूजा का महत्व महिलाओं की शक्ति में है, जो व्रत रखकर परिवार की खुशहाली की कामना करती हैं। वर्ष 2025 में, छठ पूजा का महत्व और बढ़ गया है, क्योंकि यह पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती है।
छठ पूजा की कथा: प्राचीन कहानियां और प्रेरणा
छठ पूजा, जिसे डाला छठ, सूर्य षष्ठी, या छठ महापर्व के नाम से जाना जाता है, हिंदू धर्म का एक प्राचीन और पवित्र त्योहार है, जो सूर्य देव और छठी माई (उषा या प्रकृति देवी) की आराधना के लिए मनाया जाता है। यह चार दिवसीय पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को अपने चरम पर होता है, जो 2025 में 28 अक्टूबर को पड़ रहा है। छठ पूजा की कथाएं इस पर्व को धार्मिक और सांस्कृतिक गहराई प्रदान करती हैं, जो भक्ति, कृतज्ञता, और प्रकृति के प्रति सम्मान को दर्शाती हैं। ये कहानियां महाभारत, रामायण, और अन्य पौराणिक ग्रंथों से प्रेरित हैं, जो इस पर्व के ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व को उजागर करती हैं। इस लेख में, हम छठ पूजा की प्रमुख कथाओं, उनके प्रेरणादायक संदेशों, और उनके सांस्कृतिक प्रभाव पर विस्तार से चर्चा करेंगे, ताकि इस पर्व की समृद्ध विरासत को समझा जा सके।
छठ पूजा की पौराणिक कथाएं
छठ पूजा की कथाएं प्राचीन हिंदू ग्रंथों और लोक परंपराओं से ली गई हैं। ये कहानियां भक्ति, त्याग, और प्रकृति के प्रति श्रद्धा को रेखांकित करती हैं। नीचे छठ पूजा से जुड़ी प्रमुख कथाएं दी गई हैं, जो इस पर्व को प्रेरणादायक बनाती हैं।
1. महाभारत में द्रौपदी और पांडवों की कथा
महाभारत के अनुसार, जब पांडव अपने वनवास के दौरान कठिनाइयों का सामना कर रहे थे, तब द्रौपदी को एक ऋषि ने सूर्य देव और छठी माई की पूजा करने का सुझाव दिया। द्रौपदी ने छठ व्रत को पूर्ण भक्ति और अनुशासन के साथ किया, जिसमें उन्होंने नदी किनारे सूर्य को अर्घ्य दिया और निर्जला उपवास रखा। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर सूर्य देव और छठी माई ने पांडवों को आशीर्वाद दिया, जिसके फलस्वरूप उन्हें अपनी कठिनाइयों से मुक्ति मिली और अंततः हस्तिनापुर का राज्य पुनः प्राप्त हुआ।
प्रेरणा: यह कथा हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति और अनुशासन से सबसे कठिन परिस्थितियों पर भी विजय प्राप्त की जा सकती है। द्रौपदी की भक्ति और साहस नारी शक्ति और विश्वास का प्रतीक हैं।
2. रामायण में माता सीता की कथा
रामायण में वर्णित है कि जब भगवान राम और माता सीता लंका विजय के बाद अयोध्या लौटे, तो उन्होंने सूर्य देव और छठी माई की पूजा की थी। माता सीता ने कार्तिक मास की षष्ठी तिथि पर छठ व्रत रखा और नदी किनारे सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया। यह पूजा उन्होंने अपने परिवार की सुख-समृद्धि और अयोध्या के कल्याण के लिए कृतज्ञता के रूप में की थी। उनकी भक्ति से सूर्य देव और छठी माई प्रसन्न हुए और अयोध्या में रामराज्य की स्थापना को आशीर्वाद दिया।
प्रेरणा: यह कथा कृतज्ञता और भक्ति के महत्व को दर्शाती है। यह हमें सिखाती है कि जीवन में सफलता और सुख के लिए प्रकृति और ईश्वर के प्रति आभार व्यक्त करना आवश्यक है।
3. राजा प्रियंवद और मालिनी की कथा
एक अन्य लोकप्रिय कथा राजा प्रियंवद और उनकी पत्नी मालिनी से संबंधित है। पुराणों के अनुसार, राजा प्रियंवद और मालिनी को संतान प्राप्ति की इच्छा थी, लेकिन उन्हें संतान सुख नहीं मिल रहा था। एक ऋषि के सुझाव पर मालिनी ने छठ व्रत शुरू किया, जिसमें उन्होंने सूर्य देव और छठी माई की पूजा की और कठिन उपवास रखा। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर छठी माई ने उन्हें पुत्र रत्न का आशीर्वाद दिया। तभी से छठ पूजा संतान प्राप्ति और संतान की रक्षा के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती है।
प्रेरणा: यह कथा विश्वास और भक्ति की शक्ति को दर्शाती है। यह हमें सिखाती है कि कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य और समर्पण से इच्छाएं पूरी हो सकती हैं।
4. सूर्य और संज्ञा की कथा
कुछ पौराणिक ग्रंथों में छठ पूजा को सूर्य देव और उनकी पत्नी संज्ञा से जोड़ा जाता है। संज्ञा सूर्य की तेजस्वी किरणों को सहन नहीं कर पा रही थीं, इसलिए उन्होंने अपनी छाया को सूर्य के पास छोड़ दिया और तपस्या करने चली गईं। उनकी तपस्या और भक्ति से सूर्य देव प्रसन्न हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया। इस कथा में छठी माई को संज्ञा या उषा (सूर्य की पहली किरण) के रूप में देखा जाता है, जो छठ पूजा का आधार बनीं।
प्रेरणा: यह कथा सूर्य की जीवनदायिनी शक्ति और उनकी पूजा के महत्व को दर्शाती है। यह हमें प्रकृति और सूर्य के प्रति सम्मान सिखाती है।
छठ पूजा की कथाओं का धार्मिक महत्व
छठ पूजा की कथाएं इस पर्व को धार्मिक और आध्यात्मिक गहराई प्रदान करती हैं। ये कथाएं निम्नलिखित संदेश देती हैं:
- भक्ति और अनुशासन: छठ पूजा की कथाएं, जैसे द्रौपदी और सीता की कहानियां, भक्ति और कठिन अनुशासन की शक्ति को दर्शाती हैं। निर्जला व्रत और सूर्य को अर्घ्य देना आत्म-संयम का प्रतीक है।
- प्रकृति के प्रति कृतज्ञता: सूर्य और नदियों की पूजा प्रकृति के प्रति सम्मान और कृतज्ञता को दर्शाती है। ये कथाएं हमें सिखाती हैं कि प्रकृति जीवन का आधार है।
- संतान और परिवार की रक्षा: राजा प्रियंवद की कथा संतान प्राप्ति और परिवार की रक्षा के लिए छठ पूजा के महत्व को रेखांकित करती है।
- नारी शक्ति: द्रौपदी, सीता, और मालिनी जैसी महिलाओं की कथाएं नारी शक्ति और उनकी भक्ति को उजागर करती हैं, जो छठ पूजा में महिलाओं की सशक्त भूमिका को दर्शाती हैं।
- सामुदायिक एकता: ये कथाएं सामुदायिक एकता को प्रोत्साहित करती हैं, क्योंकि छठ पूजा नदी किनारे सामूहिक रूप से मनाई जाती है।

छठ पूजा की कथाओं का सांस्कृतिक प्रभाव
छठ पूजा की कथाएं सांस्कृतिक रूप से समृद्ध हैं और बिहार, झारखंड, और पूर्वी उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा हैं:
- लोकगीत और कथाएं: छठ पूजा के दौरान गाए जाने वाले लोकगीत, जैसे “केलवा जे फरेला घवद से” और “उगु न सूरज देव”, इन कथाओं को जीवित रखते हैं। ये गीत मिथिला और भोजपुरी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं।
- सामुदायिक आयोजन: छठ पूजा की कथाएं समुदाय को एकजुट करती हैं। नदी किनारे सामूहिक पूजा, प्रसाद वितरण, और कथाओं का पाठ सामाजिक एकता को बढ़ावा देता है।
- शिक्षा और प्रेरणा: ये कथाएं बच्चों और युवाओं को स्कूलों, मंदिरों, और सामुदायिक आयोजनों के माध्यम से सुनाई जाती हैं, जो उन्हें सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों से जोड़ती हैं।
- क्षेत्रीय विविधताएं: विभिन्न क्षेत्रों में ये कथाएं स्थानीय परंपराओं के साथ मिश्रित होती हैं। उदाहरण के लिए, बिहार में द्रौपदी की कथा प्रमुख है, जबकि नेपाल में संतान प्राप्ति की कथाएं लोकप्रिय हैं।
आधुनिक संदर्भ में छठ पूजा की कथाएं
आधुनिक युग में, छठ पूजा की कथाएं और भी प्रासंगिक हो गई हैं:
- पर्यावरण जागरूकता: ये कथाएं सूर्य और नदियों के महत्व को रेखांकित करती हैं, जो जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाती हैं। लोग अब इको-फ्रेंडली सामग्रियों, जैसे बांस की सूप और मिट्टी के बर्तनों, का उपयोग करते हैं।
- सोशल मीडिया और डिजिटल प्रसार: छठ पूजा की कथाएं और लोकगीत सोशल मीडिया पर साझा किए जाते हैं, जिससे नई पीढ़ी और प्रवासी समुदाय इनसे जुड़ते हैं।
- नारी सशक्तिकरण: द्रौपदी और सीता की कथाएं महिलाओं की सशक्त भूमिका को दर्शाती हैं, जो आधुनिक युग में नारी सशक्तिकरण का प्रतीक बनती हैं।
- सांस्कृतिक पहचान: ये कथाएं बिहार और झारखंड की सांस्कृतिक पहचान को विश्व स्तर पर ले जाती हैं, क्योंकि प्रवासी समुदाय विदेशों में छठ पूजा मनाते हैं।
छठ पूजा की विधि: स्टेप-बाय-स्टेप गाइड
छठ पूजा की विधि: स्टेप-बाय-स्टेप गाइड
छठ पूजा, जिसे डाला छठ, सूर्य षष्ठी, या छठ महापर्व के नाम से जाना जाता है, हिंदू धर्म का एक पवित्र और अनुशासित त्योहार है, जो सूर्य देव और छठी माई (उषा या प्रकृति देवी) की आराधना के लिए मनाया जाता है। यह चार दिवसीय पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को अपने चरम पर होता है और 2025 में 26 अक्टूबर से 29 अक्टूबर तक मनाया जाएगा। छठ पूजा की विधि कठिन और अनुशासित है, जिसमें व्रती (व्रत रखने वाले) 36 घंटों तक निर्जला उपवास करते हैं और नदी या जलाशय के किनारे सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। यह पर्व भक्ति, पवित्रता, और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है। इस लेख में, हम छठ पूजा की विस्तृत पूजा विधि, आवश्यक सामग्री, और स्टेप-बाय-स्टेप गाइड प्रदान करेंगे, ताकि आप इस पर्व को सही तरीके से मना सकें।
छठ पूजा की अवधि और तिथियां (2025)
छठ पूजा चार दिनों का पर्व है, जिसमें प्रत्येक दिन का विशेष महत्व और विधान है। वर्ष 2025 में छठ पूजा की तिथियां निम्नलिखित हैं:
- नहाय खाय (पहला दिन): 26 अक्टूबर 2025
- लोहंडा/खरना (दूसरा दिन): 27 अक्टूबर 2025
- संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन): 28 अक्टूबर 2025
- उषा अर्घ्य और पारण (चौथा दिन): 29 अक्टूबर 2025
छठ पूजा के लिए आवश्यक सामग्री
छठ पूजा की विधि को पूर्ण करने के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है:
- बांस की सूप और टोकरी: फल, प्रसाद, और पूजा सामग्री रखने के लिए।
- दौरी (बांस की छोटी टोकरी): अर्घ्य देने के लिए।
- फल: केला, सेब, संतरा, नारियल, और अन्य मौसमी फल।
- प्रसाद: ठेकुआ (गुड़ और आटे से बनी मिठाई), गुड़ की खीर, और रोटी।
- पूजा सामग्री: दूध, जल, पंचामृत, रोली, चंदन, अगरबत्ती, कपूर, दीपक, और तिलक के लिए थाली।
- अन्य सामग्री: साफ कपड़े, मिट्टी का घड़ा, गंगा जल, और पवित्र नदी का जल।
- इको-फ्रेंडली सामग्री: पर्यावरण संरक्षण के लिए बायोडिग्रेडेबल सूप और मिट्टी के बर्तनों का उपयोग करें।
छठ पूजा की स्टेप-बाय-स्टेप विधि
छठ पूजा की विधि चार दिनों में पूरी होती है, और प्रत्येक दिन के अनुष्ठान विशिष्ट हैं। नीचे प्रत्येक दिन की विस्तृत विधि दी गई है:
पहला दिन: नहाय खाय (26 अक्टूबर 2025)
उद्देश्य: शुद्धिकरण और तैयारी
- स्नान और शुद्धता: व्रती सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं, अधिमानतः नदी या पवित्र जलाशय में। घर को साफ किया जाता है, और पूजा स्थल को शुद्ध किया जाता है।
- शुद्ध भोजन: व्रती शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण करते हैं, जिसमें लौकी की सब्जी, दाल, चावल, और रोटी शामिल होती हैं। यह भोजन केवल एक बार लिया जाता है और नमक व तेल का उपयोग न्यूनतम होता है।
- तैयारी: पूजा सामग्री, जैसे सूप, टोकरी, और फल, को इकट्ठा किया जाता है। घर में पवित्र माहौल बनाया जाता है।
- मंत्र: “ॐ सूर्याय नमः” और “ॐ छठी माइयै नमः” का जप किया जा सकता है।
- मुहूर्त: सुबह स्नान और भोजन का समय स्थानीय पंचांग के अनुसार चुना जाता है।
दूसरा दिन: लोहंडा/खरना (27 अक्टूबर 2025)
उद्देश्य: उपवास और प्रसाद की तैयारी
- दिनभर उपवास: व्रती दिनभर बिना जल और अन्न के उपवास करते हैं। यह दिन अनुशासन और भक्ति की तैयारी के लिए महत्वपूर्ण है।
- प्रसाद की तैयारी: शाम को व्रती गुड़ की खीर (रसियाव) और रोटी बनाते हैं। यह प्रसाद शुद्ध घी और गुड़ से तैयार किया जाता है। कुछ क्षेत्रों में चावल और दाल भी शामिल होती है।
- पूजा और भोग: सूर्यास्त से पहले, व्रती घर में पूजा स्थल पर दीपक जलाकर सूर्य देव और छठी माई को प्रसाद चढ़ाते हैं। इसके बाद व्रती और परिवार के सदस्य प्रसाद ग्रहण करते हैं।
- निर्जला व्रत की शुरुआत: खरना के बाद व्रती 36 घंटों का निर्जला व्रत शुरू करते हैं, जो अगले दिन संध्या अर्घ्य और उषा अर्घ्य तक जारी रहता है।
- मुहूर्त: खरना पूजा का शुभ समय 27 अक्टूबर को शाम 5:00 बजे से 6:30 बजे तक है।

तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य (28 अक्टूबर 2025)
उद्देश्य: सूर्यास्त को सूर्य को अर्घ्य अर्पित करना
- निर्जला व्रत: व्रती पूरे दिन बिना जल और अन्न के उपवास करते हैं। यह दिन सबसे कठिन होता है, क्योंकि व्रती पूर्ण समर्पण के साथ पूजा की तैयारी करते हैं।
- पूजा की तैयारी: सूप और दौरी में फल, ठेकुआ, मिठाई, और अन्य प्रसाद सजाए जाते हैं। व्रती और परिवार नदी या जलाशय के किनारे जाते हैं।
- संध्या अर्घ्य: सूर्यास्त के समय (शाम 5:30 बजे से 6:00 बजे तक), व्रती जल में खड़े होकर सूर्य देव को दूध और जल का अर्घ्य अर्पित करते हैं। सूप में रखे प्रसाद को सूर्य की ओर उठाया जाता है। लोकगीत, जैसे “उगु न सूरज देव”, गाए जाते हैं।
- पूजा विधि: व्रती सूर्य की ओर मुख करके “ॐ सूर्याय नमः” और “ॐ छठी माइयै नमः” मंत्रों का जप करते हैं। दीपक और अगरबत्ती जलाए जाते हैं।
- सामुदायिक आयोजन: नदी किनारे सामूहिक पूजा होती है, जिसमें समुदाय के लोग एकत्रित होते हैं।
चौथा दिन: उषा अर्घ्य और पारण (29 अक्टूबर 2025)
उद्देश्य: सूर्योदय को अर्घ्य और व्रत का समापन
- उषा अर्घ्य: सुबह सूर्योदय के समय (सुबह 6:30 बजे से 7:00 बजे तक), व्रती नदी या जलाशय में खड़े होकर सूर्य देव को अंतिम अर्घ्य अर्पित करते हैं। सूप में रखे प्रसाद को सूर्य की ओर उठाया जाता है, और मंत्रों का जप किया जाता है।
- व्रत का पारण: अर्घ्य के बाद व्रती व्रत तोड़ते हैं (पारण)। वे पहले प्रसाद, जैसे ठेकुआ और फल, ग्रहण करते हैं, फिर शुद्ध भोजन लेते हैं।
- प्रसाद वितरण: प्रसाद परिवार, पड़ोसियों, और जरूरतमंदों में बांटा जाता है, जो सामुदायिक एकता को बढ़ाता है।
- लोकगीत और उत्सव: उषा अर्घ्य के बाद लोकगीत गाए जाते हैं, और समुदाय में उत्सव का माहौल होता है।
- मुहूर्त: उषा अर्घ्य का शुभ समय 29 अक्टूबर को सुबह 6:30 बजे से 7:00 बजे तक है।
अतिरिक्त टिप्स और सावधानियां
- पवित्रता बनाए रखें: पूजा के दौरान शारीरिक और मानसिक शुद्धता जरूरी है। व्रती को गुस्सा, नकारात्मक विचार, और अशुद्ध भोजन से बचना चाहिए।
- इको-फ्रेंडली पूजा: पर्यावरण संरक्षण के लिए बायोडिग्रेडेबल सामग्री, जैसे मिट्टी के बर्तन और प्राकृतिक रंग, का उपयोग करें। नदी में प्लास्टिक या रासायनिक सामग्री न डालें।
- स्वास्थ्य का ध्यान: निर्जला व्रत कठिन है, इसलिए व्रती को स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए। बुजुर्गों और बच्चों को विशेष देखभाल की जरूरत होती है।
- सामुदायिक सहयोग: पूजा के लिए परिवार और समुदाय का सहयोग लें। घाट पर भीड़ हो सकती है, इसलिए समय पर पहुंचें।
- लोकगीत और परंपराएं: छठ पूजा के लोकगीत, जैसे “केलवा जे फरेला घवद से”, पूजा के माहौल को और भक्तिमय बनाते हैं।
छठ पूजा की परंपराएं और रीति-रिवाज: सांस्कृतिक धरोहर
छठ पूजा, जिसे डाला छठ, सूर्य षष्ठी, या छठ महापर्व के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म का एक प्राचीन और पवित्र त्योहार है, जो सूर्य देव और छठी माई (उषा या प्रकृति देवी) की आराधना के लिए मनाया जाता है। यह चार दिवसीय पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को अपने चरम पर होता है और 2025 में 26 अक्टूबर से 29 अक्टूबर तक मनाया जाएगा। छठ पूजा की परंपराएं और रीति-रिवाज इस पर्व को न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से भी समृद्ध बनाते हैं। मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, और नेपाल में लोकप्रिय, यह पर्व अब विश्व भर में बसे प्रवासी समुदायों द्वारा उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस लेख में, हम छठ पूजा की प्रमुख परंपराओं, रीति-रिवाजों, और उनकी सांस्कृतिक धरोहर पर विस्तार से चर्चा करेंगे, जो इस पर्व को एक अनूठा और जीवंत उत्सव बनाते हैं।
छठ पूजा की परंपराएं: एक झलक
छठ पूजा का चार दिवसीय उत्सव—नहाय खाय, खरना, संध्या अर्घ्य, और उषा अर्घ्य—अनेक परंपराओं और रीति-रिवाजों से भरा हुआ है। ये परंपराएं भक्ति, अनुशासन, और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता को दर्शाती हैं। नीचे छठ पूजा की प्रमुख परंपराएं दी गई हैं, जो इसकी सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखती हैं।
1. नहाय खाय: शुद्धता और तैयारी की शुरुआत
- परंपरा: छठ पूजा का पहला दिन “नहाय खाय” कहलाता है, जो शारीरिक और मानसिक शुद्धता के लिए समर्पित है। व्रती (व्रत रखने वाले, मुख्य रूप से महिलाएं) सुबह जल्दी उठकर पवित्र नदी या जलाशय में स्नान करते हैं, विशेष रूप से गंगा, कोसी, या गंडक नदी में। घर को अच्छी तरह साफ किया जाता है, और पूजा स्थल को शुद्ध किया जाता है।
- रीति-रिवाज: व्रती शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण करते हैं, जिसमें लौकी की सब्जी, दाल, चावल, और रोटी शामिल होती हैं। यह भोजन सात्विक होता है और नमक व तेल का उपयोग न्यूनतम होता है। इस दिन परिवार के अन्य सदस्य भी सात्विक भोजन करते हैं।
- सांस्कृतिक महत्व: नहाय खाय शुद्धता और अनुशासन की शुरुआत का प्रतीक है। यह परंपरा मिथिला और भोजपुरी संस्कृति में गहरे तक समाई है, जहां स्वच्छता को भक्ति का आधार माना जाता है।
2. खरना: प्रसाद और निर्जला व्रत की शुरुआत
- परंपरा: दूसरा दिन “खरना” या “लोहंडा” कहलाता है, जिसमें व्रती दिनभर उपवास करते हैं और शाम को विशेष प्रसाद तैयार करते हैं। इस दिन गुड़ की खीर (रसियाव) और रोटी बनाई जाती है, जो सूर्य देव और छठी माई को अर्पित की जाती है।
- रीति-रिवाज: सूर्यास्त से पहले, व्रती घर में पूजा स्थल पर दीपक और अगरबत्ती जलाकर सूर्य और छठी माई को प्रसाद चढ़ाते हैं। इसके बाद व्रती और परिवार के सदस्य प्रसाद ग्रहण करते हैं। खरना के बाद 36 घंटों का निर्जला व्रत शुरू होता है, जो संध्या और उषा अर्घ्य तक जारी रहता है।
- सांस्कृतिक महत्व: खरना की परंपरा सामुदायिक एकता को बढ़ावा देती है, क्योंकि प्रसाद पड़ोसियों और रिश्तेदारों में बांटा जाता है। गुड़ की खीर और रोटी बिहार और झारखंड की ग्रामीण संस्कृति का प्रतीक हैं।
3. संध्या अर्घ्य: सूर्यास्त को भक्ति का अर्पण
- परंपरा: तीसरा दिन छठ पूजा का मुख्य दिन है, जब व्रती सूर्यास्त के समय सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। व्रती नदी या जलाशय के किनारे जाते हैं, जहां बांस की सूप और दौरी में फल, ठेकुआ, और अन्य प्रसाद सजाए जाते हैं।
- रीति-रिवाज: व्रती जल में खड़े होकर सूर्य की ओर मुख करके दूध और जल का अर्घ्य देते हैं। सूर्य को सूप में रखे प्रसाद को दिखाया जाता है। इस दौरान छठ के लोकगीत, जैसे “केलवा जे फरेला घवद से” और “उगु न सूरज देव”, गाए जाते हैं। समुदाय के लोग एक साथ पूजा में शामिल होते हैं, और माहौल भक्तिमय होता है।
- सांस्कृतिक महत्व: संध्या अर्घ्य सामुदायिक एकता और प्रकृति के प्रति सम्मान को दर्शाता है। नदी किनारे सामूहिक पूजा और लोकगीत मिथिला और भोजपुरी संस्कृति की समृद्धि को उजागर करते हैं।
4. उषा अर्घ्य और पारण: व्रत का समापन
- परंपरा: चौथा दिन उषा अर्घ्य का होता है, जब व्रती सूर्योदय के समय सूर्य को अंतिम अर्घ्य अर्पित करते हैं। इसके बाद व्रत का पारण (व्रत तोड़ना) किया जाता है।
- रीति-रिवाज: व्रती सुबह जल्दी नदी या जलाशय पर जाते हैं और सूर्योदय के समय (6:30 से 7:00 बजे तक) जल में खड़े होकर अर्घ्य देते हैं। सूर्य को प्रसाद दिखाया जाता है, और मंत्र जैसे “ॐ सूर्याय नमः” जपे जाते हैं। पारण के बाद व्रती प्रसाद, जैसे ठेकुआ और फल, ग्रहण करते हैं और शुद्ध भोजन लेते हैं। प्रसाद परिवार और समुदाय में बांटा जाता है।
- सांस्कृतिक महत्व: उषा अर्घ्य और पारण उत्सव का समापन है, जो सामुदायिक एकता और खुशी का प्रतीक है। प्रसाद वितरण और लोकगीत इस दिन को उत्सवमय बनाते हैं।
छठ पूजा के प्रमुख रीति-रिवाज
छठ पूजा के रीति-रिवाज इस पर्व को एक अनूठी सांस्कृतिक धरोहर बनाते हैं। ये रीति-रिवाज क्षेत्रीय और सामाजिक परंपराओं के साथ मिश्रित हैं, जो इस पर्व की विविधता को दर्शाते हैं।
1. ठेकुआ और प्रसाद की तैयारी
- विवरण: ठेकुआ, जो गुड़ और गेहूं के आटे से बनी एक पारंपरिक मिठाई है, छठ पूजा का मुख्य प्रसाद है। इसे सूर्य और छठी माई को अर्पित किया जाता है। अन्य प्रसाद में फल, गुड़ की खीर, और नारियल शामिल होते हैं।
- सांस्कृतिक महत्व: ठेकुआ बनाना एक पारिवारिक गतिविधि है, जिसमें महिलाएं और बच्चे शामिल होते हैं। यह मिठाई बिहार और झारखंड की ग्रामीण संस्कृति का प्रतीक है।
2. लोकगीत और भक्ति संगीत
- विवरण: छठ पूजा के दौरान मिथिला और भोजपुरी लोकगीत गाए जाते हैं, जैसे “केलवा जे फरेला घवद से” और “मारबो रे सुगवा धनुष से”। ये गीत सूर्य और छठी माई की स्तुति करते हैं और पूजा के माहौल को भक्तिमय बनाते हैं।
- सांस्कृतिक महत्व: ये लोकगीत बिहार और झारखंड की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं और मौखिक परंपराओं को जीवित रखते हैं। नई पीढ़ी इन गीतों के माध्यम से अपनी संस्कृति से जुड़ती है।
3. नदी किनारे सामूहिक पूजा
- विवरण: छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण रीति-रिवाज नदी या जलाशय के किनारे सूर्य को अर्घ्य देना है। गंगा, कोसी, और गंडक जैसी नदियां इस पूजा का केंद्र हैं।
- सांस्कृतिक महत्व: यह परंपरा प्रकृति और जल के प्रति सम्मान को दर्शाती है। सामूहिक पूजा समुदाय को एकजुट करती है और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देती है।
4. बांस की सूप और दौरी का उपयोग
- विवरण: पूजा सामग्री को बांस की सूप और दौरी में सजाया जाता है, जो पारंपरिक और पर्यावरण-अनुकूल हैं। इनमें फल, मिठाई, और दीपक रखे जाते हैं।
- सांस्कृतिक महत्व: बांस की सूप और दौरी ग्रामीण संस्कृति का प्रतीक हैं और छठ पूजा की सादगी को दर्शाते हैं।
5. प्रसाद वितरण और सामुदायिक भोज
- विवरण: उषा अर्घ्य के बाद प्रसाद परिवार, पड़ोसियों, और जरूरतमंदों में बांटा जाता है। कुछ समुदायों में सामूहिक भोज का आयोजन होता है।
- सांस्कृतिक महत्व: यह रीति-रिवाज सामुदायिक एकता और उदारता को बढ़ावा देता है। यह बिहार और झारखंड की सांस्कृतिक परंपराओं का हिस्सा है।
क्षेत्रीय विविधताएं
छठ पूजा के रीति-रिवाज क्षेत्रों के अनुसार भिन्न हैं, लेकिन इनका मूल भाव समान है:
- बिहार: बिहार में छठ पूजा भव्य रूप से मनाई जाती है। गंगा और कोसी नदियों के घाटों पर लाखों लोग एकत्रित होते हैं। मिथिला क्षेत्र में लोकगीत और ठेकुआ की परंपरा प्रमुख है।
- झारखंड: झारखंड में छठ पूजा में भोजपुरी और मगही लोकगीत गाए जाते हैं। स्थानीय जलाशयों पर पूजा होती है।
- उत्तर प्रदेश: पूर्वी उत्तर प्रदेश में छठ पूजा घरेलू स्तर पर सादगी से मनाई जाती है। गंगा और घाघरा नदियां पूजा का केंद्र हैं।
- नेपाल: नेपाल के तराई क्षेत्र में छठ पूजा को “सूर्य षष्ठी” कहा जाता है, और यह राष्ट्रीय अवकाश के रूप में मनाया जाता है।
- शहरी क्षेत्र: दिल्ली, मुंबई, और कोलकाता जैसे शहरों में प्रवासी समुदाय यमुना, हुगली, या कृत्रिम घाटों पर पूजा करते हैं।
आधुनिक संदर्भ में परंपराएं
आधुनिक युग में छठ पूजा की परंपराएं और रीति-रिवाज नई प्रासंगिकता के साथ विकसित हो रहे हैं:
- इको-फ्रेंडली पूजा: पर्यावरण जागरूकता के साथ, लोग बायोडिग्रेडेबल सूप, मिट्टी के बर्तन, और प्राकृतिक रंगों का उपयोग कर रहे हैं। नदियों की स्वच्छता पर ध्यान दिया जा रहा है।
- सोशल मीडिया और डिजिटल उपस्थिति: छठ पूजा के लोकगीत और पूजा समारोह यूट्यूब, फेसबुक, और अन्य प्लेटफॉर्म्स पर साझा किए जाते हैं, जिससे यह वैश्विक स्तर पर पहुंच गया है।
- महिलाओं का नेतृत्व: महिलाएं पूजा और सामुदायिक आयोजनों में नेतृत्व करती हैं, जो नारी सशक्तिकरण को दर्शाता है।
- वैश्विक प्रसार: प्रवासी भारतीय समुदाय अमेरिका, कनाडा, और ऑस्ट्रेलिया में छठ पूजा मनाते हैं, जिससे यह परंपरा विश्व स्तर पर फैल रही है।
FAQ
छठ पूजा, जिसे डाला छठ, सूर्य षष्ठी, या छठ महापर्व के नाम से जाना जाता है, हिंदू धर्म का एक प्राचीन और पवित्र त्योहार है, जो सूर्य देव और छठी माई (उषा या प्रकृति देवी) की आराधना के लिए मनाया जाता है। यह चार दिवसीय पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को अपने चरम पर होता है और 2025 में 26 अक्टूबर से 29 अक्टूबर तक मनाया जाएगा। यह पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, और नेपाल में लोकप्रिय है, लेकिन अब यह विश्व भर में बसे प्रवासी समुदायों द्वारा भी मनाया जाता है। नीचे छठ पूजा से संबंधित 5 सामान्य प्रश्न (Frequently Asked Questions) और उनके उत्तर दिए गए हैं, जो इस पर्व के महत्व, विधि, और परंपराओं को समझने में मदद करते हैं।
1. छठ पूजा कब और क्यों मनाई जाती है?
उत्तर: छठ पूजा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है, जो 2025 में 28 अक्टूबर को अपने चरम पर होगी। यह चार दिवसीय पर्व 26 अक्टूबर (नहाय खाय) से शुरू होकर 29 अक्टूबर (उषा अर्घ्य और पारण) तक चलता है। यह पर्व सूर्य देव और छठी माई की आराधना के लिए मनाया जाता है, ताकि स्वास्थ्य, समृद्धि, और संतान की रक्षा के लिए आशीर्वाद प्राप्त हो। छठ पूजा प्रकृति के प्रति कृतज्ञता, भक्ति, और अनुशासन का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि यह व्रत पापों का नाश करता है और परिवार की खुशहाली सुनिश्चित करता है।
2. छठ पूजा की प्रमुख कथाएं क्या हैं?
उत्तर: छठ पूजा की कई पौराणिक कथाएं हैं, जो इसके धार्मिक महत्व को दर्शाती हैं:
- महाभारत की कथा: द्रौपदी और पांडवों ने वनवास के दौरान छठ व्रत रखा, जिससे उनकी कठिनाइयां दूर हुईं और हस्तिनापुर का राज्य पुनः प्राप्त हुआ।
- रामायण की कथा: माता सीता ने लंका विजय के बाद अयोध्या लौटने पर सूर्य देव और छठी माई की पूजा की, ताकि परिवार की सुख-समृद्धि के लिए कृतज्ञता व्यक्त करें।
- राजा प्रियंवद की कथा: राजा प्रियंवद और उनकी पत्नी मालिनी ने संतान प्राप्ति के लिए छठ व्रत किया, जिसके फलस्वरूप उन्हें पुत्र रत्न प्राप्त हुआ। ये कथाएं भक्ति, कृतज्ञता, और प्रकृति के प्रति सम्मान का संदेश देती हैं।
3. छठ पूजा की विधि और आवश्यक सामग्री क्या है?
उत्तर: छठ पूजा की विधि चार दिनों की है और इसमें कठिन अनुशासन की आवश्यकता होती है। यहाँ संक्षिप्त विधि और सामग्री दी गई है:
- विधि:
- नहाय खाय (26 अक्टूबर 2025): व्रती स्नान करते हैं और शुद्ध शाकाहारी भोजन (लौकी, दाल, चावल) लेते हैं।
- खरना (27 अक्टूबर 2025): दिनभर उपवास के बाद शाम को गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद बनाया जाता है। इसके बाद 36 घंटों का निर्जला व्रत शुरू होता है।
- संध्या अर्घ्य (28 अक्टूबर 2025): सूर्यास्त के समय नदी में खड़े होकर सूर्य को दूध और जल का अर्घ्य दिया जाता है।
- उषा अर्घ्य और पारण (29 अक्टूबर 2025): सूर्योदय के समय सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, और व्रत तोड़ा जाता है।
- सामग्री: बांस की सूप, दौरी, फल (केला, सेब, नारियल), ठेकुआ, गुड़ की खीर, दूध, गंगा जल, दीपक, अगरबत्ती, रोली, चंदन, और मिट्टी के बर्तन।
- मुहूर्त (2025): संध्या अर्घ्य (28 अक्टूबर, शाम 5:30-6:00 बजे), उषा अर्घ्य (29 अक्टूबर, सुबह 6:30-7:00 बजे)।
4. छठ पूजा की प्रमुख परंपराएं और रीति-रिवाज क्या हैं?
उत्तर: छठ पूजा की परंपराएं और रीति-रिवाज इसकी सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखते हैं:
- नहाय खाय: शुद्धता के लिए स्नान और सात्विक भोजन।
- खरना: गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद, निर्जला व्रत की शुरुआत।
- संध्या और उषा अर्घ्य: नदी किनारे सूर्य को अर्घ्य देना, लोकगीत गाना।
- ठेकुआ और प्रसाद: ठेकुआ, फल, और खीर का प्रसाद सूर्य और छठी माई को अर्पित करना।
- लोकगीत: मिथिला और भोजपुरी लोकगीत, जैसे “केलवा जे फरेला घवद से”, पूजा को भक्तिमय बनाते हैं।
- सामुदायिक पूजा: नदी किनारे सामूहिक पूजा और प्रसाद वितरण।
- बांस की सूप और दौरी: प्रसाद को सजाने के लिए पारंपरिक और पर्यावरण-अनुकूल बर्तनों का उपयोग। ये परंपराएं सामुदायिक एकता, प्रकृति के प्रति सम्मान, और नारी शक्ति को दर्शाती हैं।
5. आधुनिक युग में छठ पूजा का महत्व और चुनौतियां क्या हैं?
उत्तर: आधुनिक युग में छठ पूजा का महत्व और बढ़ गया है, लेकिन इसके साथ कुछ चुनौतियां भी हैं:
- महत्व:
- पर्यावरण जागरूकता: नदी किनारे पूजा जल संरक्षण और स्वच्छता का संदेश देती है। लोग अब इको-फ्रेंडली सामग्री, जैसे बायोडिग्रेडेबल सूप और मिट्टी के बर्तन, का उपयोग करते हैं।
- सामुदायिक एकता: सामूहिक पूजा और प्रसाद वितरण समुदाय को एकजुट करता है।
- नारी सशक्तिकरण: महिलाएं व्रत और आयोजनों में नेतृत्व करती हैं, जो नारी शक्ति को दर्शाता है।
- वैश्विक प्रसार: प्रवासी भारतीय समुदाय अमेरिका, कनाडा, और ऑस्ट्रेलिया में छठ पूजा मनाते हैं। सोशल मीडिया पर लोकगीत और पूजा समारोह साझा किए जाते हैं।
- चुनौतियां:
- नदी प्रदूषण: पूजा सामग्री और कचरे से नदियां प्रदूषित हो सकती हैं। समाधान के लिए इको-फ्रेंडली सामग्री का उपयोग बढ़ रहा है।
- भीड़ प्रबंधन: घाटों पर भीड़ से सुरक्षा और स्वास्थ्य जोखिम बढ़ता है। स्थानीय प्रशासन बेहतर प्रबंधन कर रहा है।
- व्यावसायीकरण: महंगे प्रसाद और सजावट से पर्व की सादगी कम हो सकती है। सादगी को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
- प्रभाव: छठ पूजा आधुनिक और पारंपरिक मूल्यों का मिश्रण है, जो सांस्कृतिक पहचान और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देता है।
निष्कर्ष: छठ पूजा का अनमोल संदेश
छठ पूजा हमें भक्ति और प्रकृति का महत्व सिखाती है। 2025 में इस पर्व को मनाकर जीवन समृद्ध बनाएं। शुभ छठ पूजा!