जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री: 5 अगस्त 2019 को भारत सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 और 35A को निरस्त करने के बाद जम्मू-कश्मीर (J&K) का विशेष दर्जा समाप्त कर दिया गया और इसे दो केंद्रशासित प्रदेशों—जम्मू-कश्मीर और लद्दाख—में विभाजित कर दिया गया। इसके बाद से J&K में मुख्यमंत्री का पद समाप्त हो गया, और प्रशासनिक नियंत्रण केंद्र सरकार के प्रतिनिधि (लैफ्टिनेंट गवर्नर) के हाथों में आ गया। हालाँकि, इससे पहले J&K के अंतिम मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती थीं, जिन्होंने 4 अप्रैल 2016 से 19 जून 2018 तक पद संभाला। यह जीवनचरित्र J&K के मुख्यमंत्री पद के ऐतिहासिक महत्व, महबूबा मुफ़्ती के राजनीतिक सफर और वर्तमान प्रशासनिक व्यवस्था को समझने का प्रयास करता है।

जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा: एक पृष्ठभूमि
1947 में भारत के विभाजन के बाद J&K रियासत ने भारत में विलय का फैसला किया। अनुच्छेद 370 के तहत इसे स्वायत्तता दी गई, जिसमें रक्षा, विदेश मामले और संचार को छोड़कर अन्य विषयों पर राज्य सरकार का अधिकार था। 1954 में अनुच्छेद 35A जोड़ा गया, जिसने राज्य के स्थायी निवासियों को विशेष अधिकार दिए। 1996 तक J&K में चुनाव नहीं हुए, और 2002 तक राज्य में गठबंधन सरकारों का दौर रहा।
महबूबा मुफ़्ती: जीवन और राजनीतिक सफर
प्रारंभिक जीवन
महबूबा मुफ़्ती का जन्म 22 मई 1959 को जम्मू-कश्मीर के बिजबेहरा (अनंतनाग जिला) में हुआ। उनके पिता, मुफ़्ती मोहम्मद सईद, J&K के पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री थे। माता, गुलशन आरा, एक गृहिणी थीं। महबूबा ने प्रारंभिक शिक्षा कश्मीर में प्राप्त की और जामिया मिलिया इस्लामिया, दिल्ली से अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. किया।
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री राजनीति में प्रवेश
जम्मू-कश्मीर 1984 में, महबूबा ने कांग्रेस पार्टी में शामिल होकर राजनीति शुरू की। 1996 में, उन्होंने अपने पिता के साथ जम्मू-कश्मीर पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) की स्थापना की, जिसका उद्देश्य कश्मीर के लोगों की आकांक्षाओं को शांतिपूर्ण ढंग से पूरा करना था।
चुनावी सफलता
- 1996: पहली बार बिजबेहरा विधानसभा सीट से जीतकर विधायक बनीं।
- 2002: PDP-Congress गठबंधन सरकार में कैबिनेट मंत्री बनीं।
- 2014: अनंतनाग लोकसभा सीट से सांसद चुनी गईं।
मुख्यमंत्री बनना
जनवरी 2016 में, पिता मुफ़्ती सईद के निधन के बाद, महबूबा को PDP की अध्यक्ष बनाया गया। 4 अप्रैल 2016 को BJP के साथ गठबंधन कर वह J&K की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं।
मुख्यमंत्री के रूप में प्रमुख नीतियाँ और चुनौतियाँ
1. शांति और सुलह का एजेंडा
- कश्मीरियत की पहचान: PDP के “Self-Rule” के एजेंडे को आगे बढ़ाया, जिसमें कश्मीर के लिए अधिक स्वायत्तता की माँग शामिल थी।
- युवाओं को रोजगार: “Himayat” और “Udaan” जैसी योजनाओं के माध्यम से 50,000 युवाओं को प्रशिक्षण।
- मानवाधिकार संरक्षण: सेना के अधिनियमों (AFSPA) में संशोधन की वकालत की।
2. विकास परियोजनाएँ
- श्रीनगर-जम्मू हाईवे: 4-लेन का निर्माण शुरू कराया।
- स्वास्थ्य सेवाएँ: प्रत्येक जिले में मल्टी-स्पेशियलिटी अस्पतालों का निर्माण।
- पर्यटन को बढ़ावा: गुलमर्ग और पहलगाम में अवसंरचना विकास।
3. विवाद और आलोचनाएँ
- 2016 बुरहान वानी विरोध: हिज़बुल मुजाहिदीन कमांडर की मौत के बाद हुए हिंसक प्रदर्शनों में 100 से अधिक मौतें। विपक्ष ने सरकार को “निष्क्रिय” बताया।
- BJP के साथ तनाव: 2018 में गठबंधन टूटा, और महबूबा ने इस्तीफा दे दिया।
- अनुच्छेद 370 निरसन का विरोध: 2019 के फैसले को “कश्मीर के साथ विश्वासघात” बताया।
अनुच्छेद 370 निरसन और उसके बाद
5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने J&K का विशेष दर्जा समाप्त कर दिया और इसे केंद्रशासित प्रदेश घोषित कर दिया। महबूबा मुफ़्ती ने इस फैसले का जमकर विरोध किया और इसे “संवैधानिक धोखा” कहा। उन्हें कई महीनों तक नजरबंद रखा गया।
वर्तमान प्रशासनिक व्यवस्था
J&K अब एक केंद्रशासित प्रदेश है, जिसका प्रशासन लैफ्टिनेंट गवर्नर (वर्तमान में मनोज सिन्हा) संभालते हैं। विधानसभा चुनाव अभी तक नहीं हुए हैं, और मुख्यमंत्री का पद खाली है।
महबूबा मुफ़्ती का वर्तमान राजनीतिक भूमिका
- PDP की अध्यक्ष: पार्टी को पुनर्जीवित करने और कश्मीर में राजनीतिक सक्रियता बढ़ाने का प्रयास।
- जनआंदोलन: अनुच्छेद 370 की बहाली और राज्य का दर्जा वापस पाने की माँग।
- सामाजिक कार्य: युवाओं को मुख्यधारा में लाने और मानवाधिकार मुद्दों पर आवाज उठाना।
जम्मू-कश्मीर की राजनीति: ऐतिहासिक मुख्यमंत्रियों का संक्षिप्त विवरण
- शेख अब्दुल्ला (1948–1953, 1975–1982): “शेर-ए-कश्मीर” के नाम से प्रसिद्ध, जिन्होंने राज्य के एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- फारूक अब्दुल्ला (1982–1984, 1986–1990, 1996–2002): शेख अब्दुल्ला के पुत्र और J&K के तीन बार मुख्यमंत्री।
- ओमर अब्दुल्ला (2009–2015): फारूक अब्दुल्ला के पुत्र और सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री।
- मुफ़्ती मोहम्मद सईद (2002–2005, 2015–2016): महबूबा मुफ़्ती के पिता और PDP के संस्थापक।

वर्तमान चुनौतियाँ और भविष्य
- सुरक्षा समस्या: आतंकवाद और सीमापार घुसपैठ।
- राजनीतिक अस्थिरता: विधानसभा चुनावों का टलना और स्थानीय नेतृत्व का अभाव।
- आर्थिक पुनरुत्थान: पर्यटन और हस्तशिल्प उद्योग को पुनर्जीवित करना।
निष्कर्ष: एक अधूरी कहानी
जम्मू-कश्मीर की राजनीति भारत के लोकतांत्रिक इतिहास का सबसे जटिल अध्याय रही है। महबूबा मुफ़्ती जैसे नेताओं ने शांति और विकास का सपना देखा, लेकिन भूराजनीतिक और सामाजिक चुनौतियों ने इसे पूरा नहीं होने दिया। 2019 के बाद से, J&K एक नए दौर में प्रवेश कर चुका है, जहाँ विकास और सुरक्षा के बीच संतुलन बनाना सबसे बड़ी परीक्षा है। भविष्य में, जनता की आवाज़ को राजनीतिक प्रतिनिधित्व देना और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को पुनर्जीवित करना ही इस क्षेत्र की स्थिरता की कुंजी होगी।
नोट: यह जीवनचरित्र जम्मू-कश्मीर की वर्तमान प्रशासनिक स्थिति और ऐतिहासिक संदर्भों को ध्यान में रखकर लिखा गया है। चूँकि अगस्त 2019 के बाद से J&K में मुख्यमंत्री का पद समाप्त हो चुका है, यह लेख महबूबा मुफ़्ती के कार्यकाल और वर्तमान व्यवस्था पर केंद्रित है।