बंगाल में बांग्लादेश सरीखे हालात, सैकड़ों हिंदू परिवार कर रहे पलायन – 2025

वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ हाल में बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में भीषण हिंसा हुई। उपद्रवियों ने वहां के हिंदुओं को चुन-चुनकर निशाना बनाया। सैकड़ों हिंदू परिवारों को अपनी जान बचाने के लिए बंगाल के दूसरे जिलों और पड़ोसी राज्य झारखंड में शरण लेनी पड़ी। डर का माहौल ऐसा है कि इनमें से अभी भी बहुत से लोग वापस मुर्शिदाबाद अपने घरों को नहीं लौटे हैं। उन्हें बंगाल सरकार और पुलिस पर भरोसा नहीं।

वे सीमा सुरक्षा बल की तैनाती की सूरत में ही वापसी के लिए तैयार हैं। मुर्शिदाबाद के वर्तमान हालात की चर्चा आज देश भर में हो रही है, लेकिन जल्द ही उसे भुला दिया जाएगा। अगर इस तरह की घटनाओं पर अंकुश नहीं लगाया गया तो कल बंगाल के अन्य जिलों जैसे मालदा, दिनाजपुर, बीरभूम, 24 परगना की भी ऐसी ही हालत होगी।

बंगाल, बिहार, झारखंड हो या देश का कोई अन्य प्रदेश, हिंसा और दंगे की घटनाओं की थोड़े समय चर्चा कर हम यह मान लेते हैं कि हमने अपना कर्तव्य पूरा कर लिया। क्या हमने कभी यह पता लगाया कि मुर्शिदाबाद की तरह से अन्य इलाकों से आतंक और भय के चलते पलायन करने वाले परिवार अब कहां हैं? किस हाल में हैं? कितने फिर से वापस अपने घरों को लौटे?

शायद ही कोई यह बता सके कि पिछले विधानसभा चुनाव के बाद हुई हिंसा के चलते जो लोग असम भागने को मजबूर हुए थे, वे वापस लौट पाए या नहीं? यह भी किसी से छिपा नहीं कि विस्थापित कश्मीरी हिंदू कश्मीर लौटने को तैयार नहीं हैं। सच तो यह है कि उत्पीड़न और आतंक से पलायन करने वाले न तो अफगानिस्तान लौट पाए, न पाकिस्तान, न बांग्लादेश और भारत में भी जहां से वे पलायन को बाध्य हुए, वहां लौटना नहीं चाहते या यह कहिए कि चाहकर भी लौट नहीं पाते।

मुर्शिदाबाद की घटना को केवल वक्फ कानून विरोधियों की हिंसा के रूप में देखने की भूल न करें। वक्फ कानून का विरोध तो बहाना भर था। पूर्वोत्तर के राज्य-सिक्किम, असम, अरुणाचल, नगालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा और मेघालय का प्रवेश द्वार ‘चिकन नेक’ कहलाता है। वहां से चीन और बांग्लादेश की दूरी बहुत कम है। ऐसे में इन दिनों दोनों देशों की बढ़ती दोस्ती को नजरअंदाज करना देश की सुरक्षा को खतरे में डालना होगा।

चिकन नेक के लिए ही भारत विभाजन के समय हिंदू बहुल खुलना जिले को तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान को देकर मुस्लिम बहुल मुर्शिदाबाद लिया गया था। 1941 की जनगणना में खुलना जिले में हिंदू 58.29 प्रतिशत थे। बांग्लादेश की जनगणना यह बता रही है कि 2022 में खुलना जिले में हिंदू जनसंख्या घटकर मात्र 20.76 प्रतिशत रह गई। 2020 में नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करते हुए शरजील इमाम ने भी चिकन नेक काटने की बात कही थी। फिर भी हम सावधान नहीं हुए।

यह किसी से छिपा नहीं कि बांग्लादेश से हिंदू लगातार पलायन कर रहे हैं। चिंता की बात यह है कि यही स्थिति बंगाल के भी कुछ जिलों में देखने को मिल रही है। बंगाल से हिंदू पलायन को रोजगार से जोड़कर देखने वाले यह कभी नहीं बताते कि आखिर रोजगार के अभाव में वहां से केवल हिंदू ही पलायन क्यों कर रहे हैं, मुस्लिम क्यों नहीं?

वर्ष 1951 से 2011 के बीच देश में मुस्लिम जनसंख्या 4.31 प्रतिशत बढ़ी, पर मालदा जिले में 14.30 तथा मुर्शिदाबाद में 11.02 प्रतिशत बढ़ी। विभाजन के समय मालदा जिला मुस्लिम बहुल नहीं था, पर वह अब मुस्लिम बहुल हो गया है। कारण बांग्लादेश से मुस्लिम आबादी की घुसपैठ है। दिनाजपुर जिला अब दो जिलों में विभाजित हो गया है और उत्तरी दिनाजपुर जिले को ही चिकन नेक कहा जाता है। 2011 में उत्तरी दिनाजपुर जिले में मुस्लिम जनसंख्या बढ़कर 49.92 प्रतिशत हो गई। यानी वह भी मुस्लिम बहुल हो गया। बंगाल के अन्य जिले भी मुर्शिदाबाद, उत्तरी दिनाजपुर बनने की राह पर हैं।

जब असम में बांग्लादेश से होने वाली मुस्लिम घुसपैठ के खिलाफ 1980 में आंदोलन शुरू हुआ, तब इस्लामिक कट्टरपंथी बांग्लादेशी मुसलमानों को असम से बाहर और मुख्यतः बंगाल भेजने लगे। इसके चलते 1961-71 एवं 1971-81 के बीच बंगाल में जो मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि दर 29.76 से घटकर 29.55 प्रतिशत हो गई थी, वह 1981-91 के बीच अचानक बढ़कर 36.89 प्रतिशत हो गई।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे जुल्फिकार अली भुट्टो ने अपनी एक पुस्तक में लिखा है कि विभाजन के समय पूर्वी पाकिस्तान को जितनी जमीन मिलनी चाहिए, उतनी नहीं मिली। वामपंथी नेता हों या ममता बनर्जी, बंगाल में मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति उनकी मजबूरी है। समाचार पत्रों में यह कई बार छप चुका है कि बांग्लादेश के आतंकी संगठन बंगाल सहित देश के अन्य हिस्सों में मुसलमानों को उकसा रहे हैं।

जब गांधी जी जैसे बड़े सेक्युलर नेता देश का विभाजन, हिंदुओं का नरसंहार और उनका पलायन रोकने में असफल हो गए तो क्या आज के कथित सेक्युलर नेता मुर्शिदाबाद, मालदा जैसे इलाकों से गैर-मुस्लिमों की प्रताड़ना रोक पाएंगे?

शांति के अग्रदूत भगवान बुद्ध की मूर्ति को अफगानिस्तान में टूटते हुए सबने देखा। गुरुग्रंथ साहिब को कैसे बचाकर भारत लाया गया, यह भी किसी से छिपा हुआ नहीं है। मुर्शिदाबाद की हिंसा के पीछे के खौफनाक सच को अनदेखा करने से खतरा और बढ़ेगा ही। आज आवश्यकता इसकी है कि इस बड़े खतरे से निपटने की योजना बनाई जाए।

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