भारत-चीन: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग की बहुप्रतीक्षित बैठक बुधवार देर शाम रूस के शहर कजान में संपन्न हुई। यह दोनों नेताओं की नवंबर, 2019 के बाद पहली द्विपक्षीय प्रतिनिधि स्तर की बैठक थी जिसमें भारत-चीन के बीच स्थित वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) की मौजूदा स्थिति की समीक्षा की गई।
भारत-चीन नई शुरुआत करने पर बनी सहमति
पूर्वी लद्दाख स्थित एलएसी पर तनाव खत्म करने के लिए 21 अक्टूबर को हुए समझौते का स्वागत किया गया और अप्रैल, 2020 में चीनी सैनिकों की गलवन (पूर्वी लद्दाख) में घुसपैठ से रिश्तों में आए तनाव को खत्म करते हुए द्विपक्षीय रिश्तों को शांतिपूर्ण व स्थिर बनाने की नई शुरुआत करने पर सहमति बनी।
भारत और चीन के संबंधों का महत्व केवल हमारे लोगों के लिए ही नहीं है। वैश्विक शांति व स्थिरता के लिए भी हमारे संबंध अहम हैं। सीमा पर पिछले चार वर्षों में उत्पन्न हुए मुद्दों पर बनी सहमति का स्वागत है। सीमा पर शांति एवं स्थिरता बनाए रखना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। परस्पर भरोसा, आदर एवं संवेदनाओं का ख्याल रखना हमारे संबंधों का आयाम होना चाहिए। (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी)
भारत-चीन अधिकारियों के बीच वार्ता शुरू
मोदी व चिनफिंग ने सीमा विवाद सुलझाने के लिए दोनों देशों के बीच विशेष प्रतिनिधि स्तर की पांच वर्षों से स्थगित वार्ता फिर शुरू करने का निर्देश दिया। यह फैसला भी हुआ कि सीमा पर अमन-शांति स्थापित करने और द्विपक्षीय संबंधों के दूसरे आयामों को सामान्य बनाने के लिए भी विदेश मंत्रियों व दूसरे संबंधित अधिकारियों के बीच वार्ता शुरू की जाएगी। इसमें कैलास मानसरोवर को भारतीय तीर्थयात्रियों के लिए फिर से खोले जाने पर भी बात होगी।
मोदी-चिनफिंग बैठक की जानकारी देते हुए विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने कहा, ‘दोनों नेताओं ने सीमा पर जारी स्थिति के समाधान के लिए कूटनीतिक व सैन्य स्तर पर हुई वार्ता के बाद किए गए समझौते का स्वागत किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस बात को रेखांकित किया कि एलएसी से जुड़े मुद्दों पर मतभिन्नता से सीमा पर अमन व शांति को खतरा नहीं होने देना चाहिए। इस संदर्भ में दोनों देश मानते हैं कि सीमा विवाद सुलझाने के लिए विशेष प्रतिनिधि स्तर की वार्ता को अहम भूमिका निभानी है। इसके बाद मोदी व चिनफिंग ने दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों को शीघ्र वार्ता शुरू करने का निर्देश दिया।’
भारत-चीन जल्दी होगी डोभाल और वांग यी की बैठक
इस वार्ता में भारत की अगुआई राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीन का प्रतिनिधित्व उनके विदेश मंत्री वांग यी करते हैं। यह वार्ता वर्ष 2003 में शुरू हुई थी ताकि दोनों देश सीमा विवाद का स्थायी व स्थिर हल निकाल सकें। इसकी अंतिम बैठक दिसंबर 2019 में हुई थी। मिसरी ने उम्मीद जताई कि नए निर्देश के बाद जल्द ही इनकी बैठक होगी।
भारत-चीन पहले 23 स्तरों पर हो रही थीं वार्ताएं
भारतीय विदेश मंत्रालय की तरफ से बताया गया कि द्विपक्षीय संबंधों को स्थिर करने और उन्हें नए सिरे से बनाने के लिए विदेश मंत्रियों और दूसरे अधिकारियों के स्तर पर भी वार्ता व्यवस्था को शुरू किया जाएगा।सनद रहे कि अप्रैल, 2020 में चीनी सैनिकों की पूर्वी लद्दाख में घुसपैठ से रिश्तों में आए तनाव से पहले भारत और चीन के बीच मंत्रियों व अधिकारियों की अगुआई में 23 स्तरों पर भिन्न-भिन्न तरह की वार्ताएं चल रही थीं।
इनमें आर्थिक, सामाजिक, स्वास्थ्य, विज्ञान व प्रौद्योगिकी से लेकर दोनों देशों के आम जनों को प्रभावित करने वाले कई क्षेत्रों पर बातचीत होती थी।ये सारी बंद हैं। विदेश मंत्रालय ने यह भी बताया कि दोनों नेता मानते हैं कि भारत व चीन जैसे दो पड़ोसी और दुनिया के दो सबसे बड़े देशों के बीच स्थिर, मैत्रीपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों से सिर्फ क्षेत्रीय स्तर पर ही नहीं,
बल्कि वैश्विक शांति व समृद्धि पर सकारात्मक असर होगा।यह बहु-धुव्रीय एशिया और बहु-धुव्रीय विश्व बनाने के लिए जरूरी है। दोनों नेता यह भी मानते हैं कि भारत व चीन के रिश्तों को रणनीतिक व दीर्घकालिक दृष्टिकोण से देखने की जरूरत है और विकास से जुड़ी चुनौतियों से निपटने के लिए सहयोग बढ़ाने की जरूरत है।
भारत-चीन अब भरोसा भी बढ़ेगा : विदेश सचिव
विदेश सचिव मिसरी से जब पूछा गया कि क्या इस बैठक से भारत व चीन के रिश्ते सामान्य हो गए हैं तो उनका जवाब था, ‘मैं सिर्फ यह कह सकता हूं कि पिछले दिनों जो समझौता हुआ है, उससे सामान्य रिश्ते बनाने की प्रक्रिया यात्रा चल पड़ी है। रास्ता अब खुल गया है। रास्ते पर चलने की आवश्यकता है।
आशा है कि हमारे बीच अब भरोसा भी बढ़ेगा।’ जब उनसे पूछा गया कि क्या कैलास मानसरोवर को भारतीय तीर्थयात्रियों के लिए खोल दिया जाएगा तो मिसरी का जवाब था, ‘आपसी भरोसा बढ़ाने के लिए दोनों नेताओं ने साफ तौर पर अधिकारियों को निर्देश दे दिए हैं, मुझे भरोसा है कि यह मामला भी एजेंडे में होगा।’