मोदी सरकार ने 12 नए औद्योगिक शहर विकसित करने की जो घोषणा की थी, उसके अमल की दिशा में कदम उठाने शुरू कर दिए गए हैं। 12 नए औद्योगिक स्मार्ट शहर बनाने के लिए राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास कार्यक्रम (एनआइसीडीपी) के तहत 28,602 करोड़ रुपये का निवेश होगा। इन औद्योगिक शहरों को 10 राज्यों में फैले 6 प्रमुख औद्योगिक गलियारों के किनारे विकसित किया जाएगा। ये औद्योगिक क्षेत्र हैं उत्तराखंड में खुरपिया, पंजाब में राजपुरा-पटियाला, महाराष्ट्र में दिघी, केरल में पलक्कड़, उत्तर प्रदेश में आगरा और प्रयागराज, बिहार में गया, तेलंगाना में जहीराबाद, आंध्र में ओरवाकल तथा कोप्पर्थी और राजस्थान में जोधपुर-पाली। इन औद्योगिक शहरों से न केवल बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर सृजित होंगे, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को गति भी मिलेगी। इससे भारत वैश्विक स्तर पर अपनी प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता को मजबूत कर सकेगा। इन औद्योगिक शहरों को वैश्विक मानकों के ग्रीन फील्ड स्मार्ट शहरों के रूप में विकसित किया जाएगा। इनमें पीएम गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान के अनुरूप मल्टीमाडल कनेक्टिविटी बुनियादी ढांचा विकसित होगा, जो लोगों, वस्तुओं और सेवाओं की निर्बाध आवाजाही सुनिश्चित करेगा।
इन औद्योगिक शहरों को पूरे क्षेत्र के परिवर्तन के लिए विकास केंद्र बनाने की परिकल्पना की गई है। इन औद्योगिक शहरों में 10 लाख प्रत्यक्ष और 30 लाख अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर सृजित होंगे। इसमें पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए आईसीटी-सक्षम उपयोगिताओं और हरित प्रौद्योगिकियों को शामिल किया गया है। इनके जरिए 1.5 लाख करोड़ रुपये का निवेश आकर्षित करने का लक्ष्य है। राज्यों का योगदान जमीन के रूप में होगा और केंद्र सरकार इक्विटी या डेट उपलब्ध कराएगी। कुछ औद्योगिक टाउनशिप अन्य देशों के साथ मिलकर विकसित की जाएंगी। इन औद्योगिक पार्कों में वह जमीन शामिल होगी, जो सरकार द्वारा पहले ही अधिग्रहित है और जिसके लिए पर्यावरणीय मंजूरी मिल चुकी है। दूसरे, एकल खिड़की मंजूरी के लिए स्पेशल परपज व्हीकल बनाने का प्रस्ताव भी है। तीसरे, पार्कों को समर्पित माल ढुलाई गलियारे से लगे क्षेत्रों से जोड़ा जाएगा, जिससे लाजिस्टिक लागत में कमी आएगी। इनमें से पांच अमृतसर-कोलकाता मार्ग पर, दो दिल्ली–मुंबई मार्ग पर और पांच दक्षिणी एवं मध्य मार्गों पर स्थित हैं। उल्लेखनीय है कि पहले से ही आठ औद्योगिक स्मार्ट शहर विभिन्न विकासात्मक चरणों में हैं। इनमें से चार शहर धोलेरा (गुजरात), आरिक (महाराष्ट्र), विक्रम उद्योगपुरी (मध्य प्रदेश) और कृष्णपट्टनम (आंध्र प्रदेश) में ट्रंक आधारभूत ढांचा तैयार हो चुका है और उद्योगों के लिए भूमि आवंटन का काम चल रहा है। अन्य चार शहरों में सरकार की स्पेशल परपज यूनिट सड़क, पानी, बिजली आपूर्ति जैसे बुनियादी ढांचे का निर्माण कर रही है। इस प्रकार नई घोषणा के साथ देश में कुल 20 औद्योगिक स्मार्ट शहर हो जाएंगे।
घरेलू विनिर्माण में मुख्य बाधा ऊंची उत्पादन लागत है, जिससे हमारे उत्पाद ग्लोबल सप्लाई चेन का हिस्सा नहीं बन पाते। स्पष्ट है विनिर्माण को तभी बढ़ावा मिलेगा, जब प्रक्रियागत सुधार और कारोबारी सुगमता को बेहतर बनाया जाए। यहां सबसे बड़ी समस्या राज्यों की ओर से आती है। भूमि राज्य का विषय है और कई राज्यों में भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया बहुत जटिल है और श्रम कानून भी कड़े हैं। इससे निवेश और औद्योगिक विकास प्रभावित होता है। अत: केंद्र के साथ-साथ राज्यों को भी रेगुलेटरी फ्रेमवर्क सरल बनाने और निवेश के अनुकूल नीतियां बनानी होंगी। सकारात्मक नीतियां बनें तो अच्छे परिणाम आने में देर नहीं लगती। इसका ज्वलंत उदाहरण है मेक इन इंडिया पहल।
2014 में निवेश और घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई मेक इन इंडिया पहल के सकारात्मक परिणाम आने लगे हैं। इससे मोबाइल से लेकर मिसाइल तक भारत आत्मनिर्भर बना और इन क्षेत्रों में देश का निर्यात तेजी से बढ़ा। उदाहरण के लिए जहां 2014 में मात्र दो मोबाइल विनिर्माण इकाइयां थीं, वहीं आज इनकी संख्या 200 से अधिक हो गई है। 2014 में जहां मात्र 1556 करोड़ रुपये के मोबाइल फोन निर्यात किए जाते थे, वहीं अब यह निर्यात 1.20 लाख करोड़ रुपये का हो गया है। अर्थात पिछले 10 वर्षों में देश के मोबाइल निर्यात में 7500 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। सिरेमिक और खिलौने जैसे क्षेत्र में आयात पर हमारी निर्भरता खत्म हुई और हम आयातक से निर्यातक बन गए। इस दौरान प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में 119 प्रतिशत का उछाल आया। उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना पीएलआई का परिणाम यह है कि भारत आटोमोटिव, इलेक्ट्रानिक्स, फार्मा जैसे क्षेत्रों का प्रमुख निर्माता बन गया। एप्पल, फाक्सकान जैसी वैश्विक कंपनियां भारत में निर्माण करने लगीं तो चिप निर्माता अमेरिकन कंपनी माइक्रोन भारत में यूनिट लगा रही है। सेमीकंडक्टर क्षेत्र में 1.50 लाख करोड़ का निवेश हो रहा है। इससे न सिर्फ हर वर्ष अरबों डालर का सेमीकंडक्टर आयात बंद हो जाएगा, बल्कि भारत सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखला का प्रमुख केंद्र बनेगा। इन उपलब्धियों के बावजूद सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण की हिस्सेदारी अभी भी 15 प्रतिशत से कम है, जिसमें 11 प्रतिशत जनसंख्या लगी हुई है। इस विनिर्माण से विश्व में आपूर्ति की जाने वाली मात्र दो प्रतिशत वस्तुओं का ही उत्पादन हो पा रहा है। इसका कारण है कि अब तक घरेलू विनिर्माण नीतियां समन्वित न होकर एकाकी रूप से बनीं।
देश में 4420 औद्योगिक पार्क और 270 विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) हैं। इनमें से अधिकांश को निवेश बढ़ाने में कोई विशेष सफलता नहीं मिली। एसईजेड को चीन की तर्ज पर विकसित किया गया था, जहां टैक्स राहत प्रदान करते हुए निर्यातोन्मुखी इकाइयां लगाई गई थीं। टैक्स रियायतें समाप्त होते ही एसईजेड से होने वाला निर्यात घटने लगा। मोदी सरकार इससे सबक सीखते हुए समन्वित नीति बना रही है, ताकि इन औद्योगिक शहरों का भी वही हश्र न हो, जो विशेष आर्थिक क्षेत्रों का हुआ।