झारखंड के प्रतिष्ठित आईआईटी आईएसएम धनबाद में एक स्टूडेंट को एडमिशन दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने अपने विशेष अधिकार का इस्तेमाल किया है. जी हां, सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 142 के तहत मिले पावर का इस्तेमाल करते हुए आईआईटी आईएसएम को आदेश दिया है कि वह उत्तर प्रदेश के दलित छात्र का दाखिला ले.
समय पर फीस का भुगतान नहीं करने पर नहीं मिला था दाखिला
उत्तर प्रदेश के छात्र ने आईआईटी की प्रवेश परीक्षा पास कर ली थी. लेकिन, आईआईटी धनबाद ने उसका एडमिशन लेने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि वह समय पर फीस के 17500 रुपए का भुगतान नहीं कर पाया. दलित छात्र ने आईआईटी आईएसएम के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की शरण ली. उसकी याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने आईआईटी धनबाद को सोमवार को निर्देश दिया कि ऐसे मेधावी छात्र को एडमिशन से वंचित नहीं किया जाना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- प्रतिभावान छात्र न हो दाखिले से वंचित
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि छात्र समयसीमा के भीतर फीस के कुछ पैसे जमा करने में विफल रहा, लेकिन उसे हर हाल में आईआईटी धनबाद में दाखिला मिलना चाहिए. पिछड़े समूह से आने वाले किसी भी प्रतिभावान छात्र को दाखिले से वंचित नहीं किया जाना चाहिए.
याचिकाकर्ता अतुल कुमार ने कहा- मेरी जिंदगी पटरी पर आ गई
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से याचिकाकर्ता छात्र अतुल कुमार बेहद प्रसन्न है. उसने चीफ जस्टिस की तारीफ करते हुए कहा कि उन्होंने बहुत अच्छा फैसला दिया. अतुल ने कहा कि अब मेरी जिंदगी पटरी पर आ गई है. पैसे की कमी किसी की तरक्की में बाधा नहीं बननी चाहिए.
क्या है आर्टिकल 142?
आर्टिकल 142 भारत के संविधान की एक धारा है. इसके तहत सुप्रीम कोर्ट को अपार शक्तियां प्राप्त है. किसी को न्याय दिलाने के लिए भारत के संविधान की यह धारा कोर्ट को कोई भी आदेश पारित करने का अधिकार देता है. इस अधिकार के तहत सुप्रीम कोर्ट जो आदेश पारित करेगा, वह देश भर में मान्य होगा.
कोर्ट को यह अधिकार मिल जाता है कि वह कोई आदेश पारित करे, जो विधिसम्मत हो या राष्ट्रपति के द्वारा निर्धारित तरीके से लागू करने योग्य हो. आर्टिकल 142 में प्रदत्त शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट किसी को भी कोर्ट में उपस्थित होने का आदेश जारी करसकता है. कोर्ट किसी मामले की जांच या दस्तावेज उपस्थापित करने का आदेश दे सकता है. सुप्रीम कोर्ट को इस आर्टिकल के तहत यह भी अधिकार मिल जाता है कि वह किसी मामले में अवमानना की जांच करे या किसी को दंडित कर सके.