हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 एक बार फिर जाट और गैर जाट समीकरण पर लड़ा जाएगा. जाटों की नाराजगी की खबरों के बीच बीजेपी की पहली लिस्ट में 13 टिकट इसी समुदाय को दिए गए हैं. 16 टिकटों के साथ नंबर एक पर ओबीसी हैं. कांग्रेस भूपिंदर सिंह हुड्डा के नेतृत्व में जाट वोटों के सहारे सत्ता पाने की लड़ाई लड़ रही है. दुष्यंत चौटाला की जेजेपी और सांसद चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी कांशीराम का गठजोड़ जाट-दलित समीकरण साधने में जुटा हुआ है. इंडियन नेशनल लोकदल और बीएसपी भी इसी जाट-दलित समीकरण के सहारे मैदान में है.
हरियाणा में जाट सबसे अधिक
हरियाणा चुनाव में जाट वर्ग जो कि किसान भी है, वो बड़ी भूमिका निभाने जा रहा है. हरियाणा में जाटों की आबादी सबसे अधिक है. रणनीतिकार इसे 22 से 27 फीसदी तक मानते हैं. इस बार बीजेपी और जेजेपी दोनों से जाट नाराज बताया जा रहा हैं इन दोनों ही पार्टियों को किसानों के विरोध का सामना भी करना पड़ रहा है.
2014 तक जाट समुदाय का हरियाणा की राजनीति पर काफी असर रहता रहा था. लेकिन इसी साल मोदी फैक्टर के कारण बड़ा उलटफेर हुआ और हरियाणा में बीजेपी ने लोकसभा की 10 सीटों पर जीत हासिलकर ली. इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 90 में से 40 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत की सरकार बना ली.
बीजेपी नेतृत्व ने यहां नया प्रयोग करते हुए पंजाबी समुदाय से मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बना दिया. इसके बाद 2019 में बीजेपी एक बार फिर जीती और उसने ओबीसी समुदाय से नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बना दिया. ये बदलाव तब हुआ जब हरियाणा में 33 साल मुख्यमंत्री जाट समुदाय से रहे हैं. गैर जाट समुदाय से भगवत दयाल शर्मा, राव बीरेंद्र सिंह, बिश्नोई समाज से भजन लाल, पंजाबी मनोहर लाल खट्टर, नायब सिंह सैनी सीएम बने हैं.
33 साल जाट मुख्यमंत्री
हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों में से 40 पर जाट प्रभाव रखते हैं. 1966 में पंजाब से अलग होने के बाद 33 साल तक जाट समुदाय का हरियाणा की राजनीति में प्रभुत्व रहा. हरियाणा में जाट समुदाय की ताकत पर नजर डालें तो यहां चौधरी देवी लाल, बंसी लाल, भूपिंदर सिंह हुड्डा ने सबसे लंबे समय तक राज किया. दो बार सीएम रहे देवी लाल जनता दल सरकार में उप प्रधानमंत्री भी रहे. बंसी लाल इंदिरा गांधी सरकार में रक्षा मंत्री रहे. वहीं भूपिंदर सिंह हुड्डा के पिता रणबीर सिंह हुड्डा संविधान सभा के अध्यक्ष रह चुके हैं. भूपिंदर सिंह हुड्डा 10 साल हरियाणा के सीएम भी रहे हैं.
वोट बंटने से हुआ नुकसान
2024 के विधानसभा चुनाव में जाट वोट कांग्रेस, इंडियन नेशनल लोकदल और जेजेपी में बंटने की संभावना है. ओम प्रकाश चौटाला की पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल में फूट के बाद अजय चौटाला और अभय चौटाला अलग हो गए. अजय चौटाला ने अपनी अलग पार्टी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) बनाई.
2019 विधानसभा में जेजेपी का बीजेपी से गठबंधन हुआ और उनके बेटे दुष्यंत चौटाला सरकार के साथ मिल गए. जेजेपी के कई मंत्री भी सरकार में बने. लेकिन 2024 विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी और जेजेपी की रास्ते अलग हो चुके हैं. दुष्यंत चौटाला ने आजाद समाज पार्टी कांशीराम से गठबंधन करके जाट-दलित समीकरण खड़ा करने की कोशिश शुरू की है.
इसके अलावा ओम प्रकाश चौटाला की इंडियन नेशनल लोकदल ने भी जाट-दलित समीकरण को देखते हुए बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया है. हरियाणा में जाट के बाद दलितों की आबादी सबसे अधिक है.
ये है बीजेपी का गणित
बीजेपी को 2014 विधानसभा चुनाव में 40 सीटें मिलीं थी. इसके बाद 2019 के चुनाव में उसे 47 सीटें मिली थीं. इस बार बीजेपी हैट्रिक लगाने की तैयारी में है. लेकिन वो नई सोशल इंजीनियरिंग पर काम कर रही है. जिसमें जाट भी शामिल हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार किसान आंदोलन और महिला पहलवानों के साथ हुए व्यवहार से जाट बीजेपी से दूर हो रहा है.
आरोप है कि केंद्र में 2024 में बीजेपी ने एक भी जाट को मंत्री नहीं बनाया. मनोहर लाल खट्टर पंजाबी, कृष्ण्पाल सिंह गुज्जर और राव इंद्रजीत यादव हैं. बीजेपी ने 67 प्रत्याशियों की जो लिस्ट जारी की है, उसमें सोशल इंजीनियरिंग भी दिख रही है. इसमें ओबीसी से 16 प्रत्याशी उतारे गए हैं. इसके बाद 13 टिकट जाटों को गए हैं. इसके बाद दलित समुदाय को 13, ब्राह्मण को नौ, आठ पंजाबी, पांच वैश्य, दो राजपूत और एक सिख को प्रत्याशी बनाया गया है.
जाट कब किसके साथ
- 2014 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ जाट वो 42 प्रतिशत रहा. लोकसभा चुनाव में 40.7 प्रतिशत.
- 2019 में विधानसभा चुनाव में 38.7 प्रतिशत और लोकसभा में 39.8 प्रतिशत.
- 2014 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को जाट वोट 24 फीसदी मिला. जबकि लोकसभा चुनाव में 32.9 फीसदी.
- 2019 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 33.7 फीसदी जाट वो मिला और लोकसभा में 42.4 फीसदी.
हरियाणा में जातियों की स्थिति
जाट – 22 से 27 प्रतिशत
अनुसूचित जाति – 21 प्रतिशत
पंजाबी – 8 प्रतिशत
ब्राह्मण – 7.5 प्रतिशत
अहीर – 5.14 प्रतिशत
वैश्य – 5 प्रतिशत
जाट सिख – 4 प्रतिशत
मुस्लिम – 3.8 प्रतिशत
राजपूत – 3.4 प्रतिशत
गुर्जर – 3.35 प्रतिशत
बिश्नोई – 0.7 प्रतिशत
अन्य – 15.91 प्रतिशत