Hindu of Jammu Kashmir: कश्मीर में पाकिस्तान ने इस तरह हिंदू-मुस्लिम के बीच खड़ी करनी चाही नफरत की दीवार-2025

Hindu of Jammu Kashmir : कश्मीर की उत्पत्ति भगवान विष्णु के आदेश से हुई थी और इस भूमि को हिंदू ऋषियों की भूमि मानते हैं. इस भूमि पर बाबा अमरनाथ विराजते हैं, यहां शारदा पीठ है जो कभी शिक्षा का केंद्र था. उस धरती पर जब आतंकियों ने पर्यटकों का धर्म पूछकर उन्हें गोलियों से भून दिया, तो अचानक लोगों के मन में यह विचार उठा कि आखिर हमारे साथ हमारी ही धरती पर इस तरह का व्यवहार क्यों? आइए जानते हैं कि कश्मीर का इतिहास क्या है और कौन से राजवंशों ने यहां शासन किया और किस तरह पाकिस्तान ने कश्मीर को भारत के खिलाफ इस्तेमाल करने की कोशिश की.

Hindu of Jammu Kashmir : पहलगाम हमले के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच तल्खी बढ़ती जा रही है, एक ओर जहां भारत ने सिंधु जल समझौते को निलंबित करते हुए पाकिस्तान का पानी बंद किया है और वहां के नागरिकों का वीजा रद्द किया है,

वहीं पाकिस्तान ने शिमला समझौते को रद्द करते हुए अपने उड़ान क्षेत्र को भारतीय विमानों के लिए प्रतिबंधित कर दिया है. वहीं देश में आम जनमानस के बीच आतंकियों को लेकर आक्रोश और नफरत की भावना पनप रही है. सोशल मीडिया में हमले के चश्मदीदों के बयान वायरल हो रहे हैं, जिसमें वे आतंकियों की क्रूरता की कहानी बयां कर रहे हैं.

वे बता रहे हैं कि किस तरह आतंकियों ने धर्म और नाम पूछकर लोगों को गोली मारी. इन हालात में सबके मन में यह सवाल है जिस कश्मीर के बारे में यह मान्यता है कि यह ऋषियों की भूमि है और जहां भगवान अमरनाथ विराजते हैं उस धरती पर कैसे और कबसे हिंदू अल्पसंख्यक हो गया और वहां उन्हें उनका धर्म पूछकर मारा जाने लगा. आखिर क्या है कश्मीर का अबतक का इतिहास?

Hindu of Jammu Kashmir प्राचीन काल में जम्मू-कश्मीर की क्या थी स्थिति

आजादी से पहले यानी अंग्रेजों के शासन से पहले जम्मू-कश्मीर पर हिंदुओं और मुसलमानों का शासन रहा था.प्राचीन इतिहास में जाएं तो नीलमत पुराण के अनुसार कश्मीर की उत्पत्ति भगवान विष्णु के आदेश से हुई थी. ऋग्वेद और अन्य वेदों में भी कश्मीर की प्राकृतिक सुंदरता का जिक्र मिलता है,

जिससे यह स्पष्ट है कि जम्मू-कश्मीर हिंदुओं के लिए बहुत खास था. इसे ऋषि भूमि माना जात था, जहां भारतीय ऋषि और मनीषी तप करते थे.अमरनाथ की गुफा और शारदा पीठ ने भी इसे हिंदुओं के लिए पूज्य बनाया है.प्राचीन काल में जम्मू-कश्मीर में शैव उपासना का बड़ा महत्व था और यहां के अधिकतर निवासी हिंदू थे. बाद में बौद्ध धर्म ने भी यहां जगह बनाई, लेकिन हिंदू धर्म के मानने वाले ही ज्यादा थे. ब्राह्मणों का समाज में बहुत महत्वपूर्ण स्थान था.

Hindu of Jammu Kashmir : इतिहास के अनुसार कौन था जम्मू-कश्मीर का पहला राजा

कश्मीर के इतिहास से जुड़ी प्रमुख पुस्तक ‘राजतरंगिणी’ में कल्हण ने लिखा है कि गोनंद वंश को कश्मीर का सबसे प्राचीन राजवंश माना जाता है. गोनंद प्रथम को कश्मीर का प्रथम शासक माना जाता है, उसने महाभारत काल के दौरान शासन किया था.राजतरंगिणी के अनुसार, गोनंद ने मथुरा के राजा कृष्ण के साथ युद्ध किया था.

Hindu of Jammu Kashmir: गोनंद सिंधु क्षेत्र का था और वहां से वह कश्मीर आया और यहां अपना शासन स्थापित किया.राजतरंगिणी की रचना 12वीं शताब्दी में हुई है. प्रसिद्ध कश्मीरी इतिहासकार पीएनके बामजई ने अपनी प्रसिद्ध किताब ‘Culture and Political History of Kashmir’ में लिखा है कि कश्मीर पर गोनंद वंश के शासकों का राज कई पीढ़ियों तक रहा. सम्राट अशोक ने अपने साम्राज्य विस्तार की नीतियों के तहत कश्मीर को मौर्य साम्राज्य में शामिल किया और यहां बौद्ध धर्म को बढ़ावा दिया.

Hindu of Jammu Kashmir: उसने श्रीनगर में कई स्तूप और विहार भी बनवाए थे. उसके बाद कुषाण वंश के काल में भी बौद्ध धर्म को बढ़ावा मिला. कश्मीर के अंतिम हिंदू शासक लोहार वंश के थे. कश्मीर में लोहार वंश 1003 से लगभग 1320 ईस्वी तक कायम रहा. 14वीं शताब्दी में यहां के शासक कमजोर पड़ गए, जिसकी वजह कश्मीर में इस्लाम का प्रसार हुआ और हिंदू राज का अंत हुआ.

शम्सुद्दीन शाहमीर था कश्मीर का पहला मुस्लिम शासक

Hindu of Jammu Kashmir: कश्मीर में इस्लाम का प्रवेश सूफी संतों के जरिए हुआ था और जब इस्लाम का प्रभाव बढ़ा तो 1339 ई. में यहां शहमीर राजवंश की स्थापना हुई. शाहमीर राजवंश का पहला मुस्लिम शासक शम्सुद्दीन शाहमीर था, जिसने 1339 ई. में सत्ता संभाली और कश्मीर का पहला मुस्लिम शासक बना. उसके बाद कश्मीर पर किसी हिंदू राजा का शासन स्थापित नहीं हुआ.

हालांकि 1846 में जब अंग्रेजों और जम्मू के राजा गुलाब सिंह के बीच अमृतसर संधि हुई तो उन्हें कश्मीर दे दिया गया और वे पूरे जम्मू-कश्मीर के महाराजा बने. आजादी के वक्त जम्मू-कश्मीर के जो महाराजा थे, वे इसी गुलाब सिंह के पोते थे, जिनका नाम हरि सिंह था.

Hindu of Jammu Kashmir: सूफी संतों के जरिए इस्लाम पहुंचा कश्मीर

1320 के आसपास एक सूफी संत बुलबुल शाह कश्मीर आए और उन्होंने यहां इस्लाम का प्रचार किया. उन्होंने अपने विचारों और भक्ति के जरिए इस्लाम का प्रचार किया. उनके प्रभाव में आकर तिब्बती मूल के एक राजा रिंचन (Rinchana) जो बौद्ध था, उसने इस्लाम स्वीकार कर लिया और अपना नाम सदरुद्दीन रखा.

बुलबुल शाह के बाद सैयद अली हमदानी और शेख नूरुद्दीन नूरानी ने भी इस्लाम का प्रचार किया और खासकर समाज के निम्नवर्ग के लोगों को समानता का भरोसा दिलाया. लेकिन बाद में कई मुस्लिम शासकों ने जबरन धर्मांतरण करवाया और मंदिरों को नुकसान भी पहुंचाया. सिकंदर बुतशिकन नाम के मुस्लिम शासक ने मंदिरों को तोड़ा और जबरन धर्मांतरण कराया. वह बहुत ही कट्टर शासक था.

उसके शासककाल में हिंदुओं ने या तो इस्लाम कबूला या फिर वे घाटी छोड़कर चले गए. वह शाह मीर वंश का शासक था और उसका शासनकाल 1389–1413 ई था. इसी काल में कश्मीर में मुसलमानों की संख्या बढ़ने लगी और हिंदुओं की घटने लगी.16वीं और 17वीं शताब्दी में जब कश्मीर पर मुगलों का शासन था, तब भी धर्मांतरण तेजी से हुआ और इस्लाम का प्रभाव बढ़ता गया. इसी काल में कश्मीर में हिंदू अल्पसंख्यक बनने की ओर अग्रसर होते गए और मुसलमान बहुसंख्यक होते गए.

कश्मीर में कायम थी हिंदू-मुस्लिम एकता

Hindu of Jammu Kashmir: प्राचीन काल में हिंदू धर्म के मानने वाले ही कश्मीर में ज्यादा थे, जब 14वीं शताब्दी में यहां इस्लाम का प्रवेश हुआ, तो धीरे-धीरे उसके अनुयायी भी बढ़ने लगे. सूफी संतों ने काफी शांति से अपने धर्म का प्रचार किया था, इसलिए घाटी में कोई विवाद भी नहीं था. दोनों धर्म के लोग अपनी साझा संस्कृति के साथ थे. कुछेक घटनाएं होती रहती थीं,

लेकिन कभी कोई बड़ा बवाल नहीं हुआ. धीरे-धीरे कश्मीर में मुसलमानों की संख्या बढ़ने लगी और मुगल काल तक वे बहुसंख्यक होने के कगार पर थे और 18 से 19 शताब्दी में कश्मीर में हिंदू अल्पसंख्यक और मुसलमान बहुसंख्यक हो गए. उसके बाद भी दोनों धर्म के बीच कोई बड़ी या गहरी रेखा नहीं खिंची गई थी. फिल्मों की शूटिंग होती थी,

सैलानी कश्मीर जाते थे. सबसे फेमस हनीमून डेस्टिनेशन था कश्मीर. लेकिन जब पाकिस्तान ने अप्रत्यक्ष युद्ध का सहारा लिया और कश्मीरियों के मन में जहर भरा और युवाओं को ट्रेनिंग देकर उन्हें आतंकी बनाना शुरू किया. कश्मीरियों को धर्म के आधार पर भड़काना शुरू किया, जिससे कश्मीर में हिंदू-मुसलमान के बीच दीवार खड़ी हो गई.

धीरे-धीरे यह दीवार बड़ी होती गई और नफरत ने जगह बनाना शुरू कर दिया. 90 के दशक में कश्मीर से पंडितों को भागना पड़ा और आज स्थिति यह है कि कश्मीर में हिंदू आबादी ना के बराबर है. आर्टिकल 370 के हटाए जाने के बाद स्थिति में बदलाव हुआ है और हो रहा है,

लेकिन पाकिस्तान को यह सबकुछ भा नहीं रहा है और उसने एक बार फिर कश्मीर में नफरत की जंग छेड़ दी है. वह कश्मीर पर इसलिए अपना हक समझता है कि क्योंकि यहां की बहुसंख्यक आबादी मुसलमानों की है, लेकिन कश्मीरी हमेशा भारत के साथ रहे हैं और पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया है.

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