सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को झारखंड सरकार से सवाल किया कि एयरक्राफ्ट एक्ट के तहत सीआईडी भाजपा सांसद निशिकांत दुबे और मनोज तिवारी के विरुद्ध जांच कैसे कर सकती है।दोनों पर आरोप है कि उन्होंने 31 अगस्त, 2022 को देवघर एयरपोर्ट से अपने चार्टर्ड विमान को निर्धारित समय के बाद उड़ान की मंजूरी देने के लिए एयर ट्रैफिक कंट्रोल को मजबूर किया था। यह एयरपोर्ट के सुरक्षा प्रोटोकाल के विरुद्ध था।
सुप्रीम कोर्ट पीठ ने सुरक्षित रखा फैसला
जस्टिस एएस ओका और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने झारखंड हाई कोर्ट के 13 मार्च, 2023 के फैसले के विरुद्ध राज्य सरकार की अपील पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। हाई कोर्ट ने भाजपा सांसदों एवं अन्य के विरुद्ध एफआईआर रद्द कर दी थी
फैसला सुरक्षित रखने से पहले शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार के वकील जयंत मोहन और भाजपा नेताओं के वकील मनिंदर सिंह की दलीलें सुनीं। पीठ ने जयंत मोहन से सवाल किया कि जब मामला एयरक्राफ्ट एक्ट के तहत सुनवाई योग्य है तो झारखंड सीआईडी इसकी जांच कैसे कर सकती है।
सुप्रीम कोर्ट राज्य सरकार से पूछे सवाल
इस पर दलील दी गई कि एयरक्राफ्ट से जुड़े खास तरह के अपराधों से निपटने के लिए विशेष कानून के तहत अलग तंत्र की व्यवस्था है। इससे पहले पीठ ने राज्य से उसकी उस दलील के समर्थन में फैसले प्रस्तुत करने को कहा था कि पूर्व अनुमति के बिना जांच जारी रह सकती है।हाई कोर्ट ने इस आधार पर एफआईआर रद्द कर दी थी कि एयरक्राफ्ट (अमेंडमेंट) एक्ट, 2020 के अनुसार कोई पूर्व अनुमति नहीं ली गई थी। यह एफआईआर अगस्त, 2023 में देवघर जिले के कुंडा पुलिस स्टेशन में दर्ज कराई गई थी।
9 लोगों को किया था नामित
इसमें दोनों भाजपा सांसदों समेत नौ लोगों को नामित किया गया था। दुबे के वकील ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था कि 31 अगस्त को देवघर से दिल्ली की उड़ान विलंबित थी। हालांकि, विमानन नियमों के मुताबिक सूर्यास्त के आधे घंटे बाद विमान उड़ान भर सकता है।उस दिन सूर्यास्त लगभग 6.03 बजे हुआ था और विमान ने 6.17 बजे उड़ान भरी थी, जो मानकों के दायरे में थी। उनका कहना था कि सांसदों को राजनीतिक बदले की भावना से निशाना बनाया गया था।