उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि शिक्षा का व्यापार बनना देश के भविष्य के लिए अच्छा नहीं है। आजकल बच्चों में विदेश जाकर पढ़ाई की नई बीमारी आई है। उन्हें लगता है कि विदेश जाते ही स्वर्ग मिल जाएगा। धनखड़ शनिवार को सीकर में एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।
विदेश जाने से छह बिलियन यूएस डॉलर फारेन एक्सचेंज में जा रहा
उन्होंने कहा कि कोई आकलन नहीं है कि बच्चा किस संस्था में जा रहा है, किस देश में जा रहा है। एक आकलन के मुताबिक छात्रों के विदेश जाने से छह बिलियन यूएस डॉलर फारेन एक्सचेंज में जा रहा है। अंदाजा लगाइए यदि यह हमारी संस्थाओं के इंफ्रास्ट्रक्चर में लगाया जाता तो स्थिति कितनी अच्छी होती।
2024 में लगभग 13 लाख छात्र विदेश गए
अनुमान है कि 2024 में लगभग 13 लाख छात्र विदेश गए। उनके भविष्य का क्या होगा, इसका आकलन किया जा रहा है, लोग अब समझ रहे हैं कि अगर उन्होंने यहां पढ़ाई की होती तो उनका भविष्य कितना उज्ज्वल होता।
आगे बोले कि मेरी मान्यता है कि शिक्षण संस्थाओं को आर्थिक रूप से मजबूत होना चाहिए। एक जमाना था जब हमारे पास नालंदा और तक्षशिला जैसे संस्थान थे, लेकिन बख्तियार खिलजी ने उन्हें बर्बाद कर दिया। अंग्रेजों ने भी हमारी संस्थाओं को कमजोर किया।
छात्रों के विदेश में पढ़ाई करने पर जताई जिंता
उपराष्ट्रपति ने उद्योग जगत के नेताओं से छात्रों को जागरूक करने और प्रतिभा पलायन तथा विदेशी मुद्रा के नुकसान को रोकने में मदद करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि कल्पना करें कि यदि छह बिलियन अमेरिकी डॉलर शैक्षणिक संस्थानों के बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए खर्च किए जाते हैं, तो हम कहां खड़े होंगे। मैं इसे विदेशी मुद्रा पलायन और प्रतिभा पलायन कहता हूं। ऐसा नहीं होना चाहिए। यह संस्थानों की जिम्मेदारी है कि वे अपने छात्रों को विदेशी की स्थिति के बारे में जागरूक करें।
उपराष्ट्रपति ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति की भी प्रशंसा की
उपराष्ट्रपति ने इस बात पर जोर दिया कि शिक्षा का व्यवसाय में तब्दील होना देश के भविष्य के लिए अच्छा नहीं है। उन्होंने छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए प्रौद्योगिकी के अधिकतम उपयोग का आह्वान करते हुए कहा कि कुछ मामलों में, यह जबरन वसूली का रूप भी ले रहा है। यह चिंता का विषय है। उपराष्ट्रपति ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति की भी प्रशंसा की, जिसे उन्होंने गेम चेंजर कहा।