डिप्रेशन के शिकार अमेरिका में वर्कप्लेस (कार्यस्थलों) में मेंटल हेल्थ एक गंभीर मुद्दा बनता जा रहा है। द कॉन्फ्रेंस बोर्ड के सर्वे के अनुसार, काम का तरीका और इसके दबाव से अमेरिका में 34% कर्मचारी डिप्रेशन के शिकार हैं। हालांकि, यदि आप वर्कप्लेस पर डिप्रेशन से गुजर रहे हैं तो आप अकेले नहीं हैं, दुनिया भर में 28 करोड़ लोग विभिन्न कारणों से इसके शिकार हैं।
वर्कप्लेस पर डिप्रेशन के कई लक्षण तो तुरंत समझ में आ जाते हैं लेकिन कई ऐसे होते हैं कि हम उसे सामान्य मान नजरअंदाज कर देते हैं। इसमें काम की आदतें भी शामिल हैं। आइए जानते हैं काम की 4 आदतों के बारे में जो डिप्रेशन के लक्षण हो सकते हैं।
1. बिना रुके काम और घर जाने का मन न करना:
यदि आप काम में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि घर जाने का मन नहीं करता? संभव है कि आप काम में खुद को इसलिए डुबो रहे हों ताकि व्यक्तिगत समस्याओं से बच सकें। यह डिप्रेशन का संकेत हो सकता है।
2. सहकर्मियों से दूरी बनाना:
यदि आप पहले मिलनसार थे और अब सहकर्मियों से दूर रहने लगे हैं, मीटिंग्स में भाग नहीं ले रहे, तो यह डिप्रेशन के संकेत हो सकते हैं। सहकर्मियों से दूरी कार्यक्षमता को प्रभावित वकरती है व इससे आप अकेलापन महसूस कर सकते हैं।
3. काम में दिलचस्पी का खोना:
यदि आप अपने काम में दिलचस्पी खो चुके हैं? क्या आप स्क्रीन पर बस खाली नजरें डालते रहते हैं और महत्वपूर्ण कार्यों को नजरअंदाज करते हैं? तो यह भी डिप्रेशन के लक्षण हो सकते हैं। जब आप अपने काम में दिलचस्पी खो देते हैं, तो आपकी प्रोडक्टिविटी कम हो जाती है और आप अपने कामों को टालते रहते हैं।
4. समय पर काम पूरा न कर पाना:
यदि आप समय पर काम पूरा नहीं कर पा रहे हैं? या आप लगातार देर से ऑफिस आ रहे हैं? यह भी डिप्रेशन के लक्षण हो सकते हैं। टाइम मैनेजमेंट में समस्या, फोकस्ड न रह पाना, और काम के प्रति उदासीनता यह सभी इस बात के संकेत हैं कि आपको मेंटल हेल्थ पर ध्यान देने की जरूरत है।
डिप्रेशन के लक्षण खुद पर हावी होने से पहले उन्हें पहचानना जरूरी
मनोचिकित्सक गार्सिया के अनुसार, वर्कप्लेस पर Depression के लक्षण खुद पर हावी होने से पहले उन्हें पहचानना और डाक्टर से प्रामर्श करना जरूरी है। इससे निपटना हमारी व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। कंपनियों को भी इसे गंभीरता से लेने की जरूरत है। Depression की पहचान के लिए स्क्रीनिंग प्रोग्राम और जागरूकता अभियान चलाते रहना चाहिए। ताकि कर्मचारी अपनी मानसिक स्थिति समझ सकें।