लिवर-किडनी : एमिलॉयडोसिस एक दुर्लभ बीमारी है जो तब होती है जब एमिलॉइड नामक प्रोटीन का निर्माण हमारे शरीर के अंगों में होने लगता है। एमिलॉइड के कारण शरीर के अंग ठीक तरह से काम नहीं करते हैं। इससे हार्ट, किडनी, स्प्लीन, नर्वस सिस्टम और पाचन तंत्र पर बुरा असर पड़ता है। कुछ तरह के एमिलॉयडोसिस दूसरी बीमारियों के साथ होते हैं।
इनमें से कुछ के कारण ऑर्गन फेलियर भी हो सकता है। इसके उपचार में कैंसर के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं के अलावा कीमोथेरेपी भी शामिल है। एमिलॉयडोसिस के लक्षण अलग अलग तरह के हो सकते हैं और इस बात पर निर्भर करते हैं कि कौन सा अंग प्रभावित है।
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मेयोक्लिनिक (Ref) के अनुसार एमिलॉयडोसिस के कारण शरीर में प्रोटीन बदल जाते हैं। यह हमारे अंगों और टिशु में इकट्ठा हो जाते हैं। एमिलॉयडोसिस (सिस्टमिक) बड़े पैमाने पर फैल सकता है या फिर यह एक क्षेत्र तक सीमित रह सकता है। सिस्टमिक एमिलॉयडोसिस का सबसे आम रूप है जो अंगों और कई टिश्यू को प्रभावित करता है। कुछ मामलों में सिस्टमिक एमिलॉयडोसिस अंगों को डैमेज कर सकता है जो जानलेवा हो भी सकता है।
लोकलाइज एमिलॉयडोसिस शरीर के किसी एक अंग या हिस्से को प्रभावित करता है। एमिलॉयडोसिस कई प्रकार के होते हैं और इनमें से कुछ एक विशिष्ट अंग जैसे लिवर, किडनी, हार्ट और नसों को प्रभावित करते हैं। वहीं दूसरे एमिलॉयडोसिस आपके पूरे शरीर में फैल जाते हैं। डॉक्टर एमिलॉयडोसिस का इलाज नहीं कर सकते हैं लेकिन वे इसकी गति को धीमा करने के साथ इसके लक्षणों को कम कर सकते हैं।
शुरुआत में इस बीमारी के लक्षणों का पता लगाना मुश्किल होता है। इसके लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं और इस बात पर निर्भर करते हैं कि कौन सा अंग प्रभावित है।
- अधिक थकान और कमजोरी
- सांस लेने में कठिनाई
- हाथों और पैरों में सुन्नता, दर्द या झुनझुनी
- टखनों और पैरों में सूजन
- कब्ज या दस्त में खून आना
- सूजी हुई जीभ
- त्वचा में बदलाव
- आंखों के आसपास बैंगनी रंग के धब्बे
एमिलॉयडोसिस का कारण
एमिलॉयडोसिस कई प्रकार के होते हैं। इनमें से कुछ जेनेटिक्स होते हैं। इसके अलावा कुछ बाहरी कारकों की वजह से भी होते हैं जैसे सूजन संबंधी बीमारियां या लंबे समय तक डायलिसिस का होना। कुछ प्रकार के एमिलॉयडोसिस कई अंगों को प्रभावित करते हैं। वहीं अन्य का शरीर के सिर्फ एक हिस्से पर असर पड़ता है।
- एल एमिलॉयडोसिस: एल एमिलॉयडोसिस को प्राइमरी एमिलॉयडोसिस भी कहा जाता है। आमतौर पर यह हार्ट, किडनी, लिवर और नसों को प्रभावित करता है।
- एए एमिलॉयडोसिस: एए एमिलॉयडोसिस को सेकेंडरी एमिलॉयडोसिस भी कहा जाता है। यह सूजन संबंधी बीमारी के कारण होता है जैसे रूमेटाइड अर्थराइटिस। यह किडनी, लिवर और स्प्लीन को प्रभावित करता है।
- वंशानुगत एमिलॉयडोसिस: यह वंशानुगत डिसऑर्डर नसों के अलावा हार्ट और किडनी को प्रभावित करता है। यह आमतौर पर तब होता है जब लिवर द्वारा बनाया गया प्रोटीन असामान्य हो। इस प्रोटीन को ट्रांसथायरेटिन (टीटीआर) कहा जाता है।
- वाइल्ड टाइप एमिलॉयडोसिस: इसे सेनाइल सिस्टेमिक एमिलॉयडोसिस भी कहते हैं। यह तब होता है जब हमारे लिवर द्वारा बनाया हुआ प्रोटीन सामान्य होता है लेकिन वह एमाइलॉयड का निर्माण बिना किसी कारण करता है। यह सबसे ज्यादा हार्ट को प्रभावित करता है और 70 वर्ष से अधिक उम्र वाले पुरुषों में इसके होने की संभावना अधिक होती है।
- लोकलाइज एमिलॉयडोसिस: यह ब्लैडर, गले या फेफड़ों को प्रभावित करता है। इसका सही निदान बहुत ही जरूरी है जिससे पूरे शरीर को प्रभावित करने वाले उपचारों से बचा जा सके।
एमिलॉयडोसिस का रिस्क फैक्टर लिवर-किडनी
एमिलॉयडोसिस के जोखिम को बढ़ाने वाले कारक कुछ इस प्रकार हैं
- उम्र
- लिंग
- अन्य बीमारियां
- पारिवारिक इतिहास
- किडनी डायलिसिस
डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है। यह किसी भी तरह से किसी दवा या इलाज का विकल्प नहीं हो सकता। ज्यादा जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से संपर्क करें।