2003 में बने हथुआ राज मेंशन में प्रवेश के साथ ही लगता है कि आप एक अलग दुनिया में आ गए हैं। खूबसूरत लॉन, एंटीक सुनहरे रंग के पोर्टिको को देखकर आप चकमा खा जाएंगे कि आप पटना में हैं या स्पेन में। इस घर की वास्तुकला शहर के दूसरे भवनों से इसको बिल्कुल अलग कर देती है। भवन को अलग रूप देने के लिए खास तौर से छपरा के एसके सिन्हा को बुलाया गया था।
मेंशन को इस अंदाज में बनाने का आइडिया महाराज मृगेंद्र प्रताप शाही का था जो हथुआ राजपरिवार के सदस्य हैं। वे बताते हैं कि चौसा युद्ध हारने के बाद जब हुमायूं फिर से दिल्ली की गद्दी पर बैठा तो उसने हथुआ साम्राज्य के महाराजा कल्याण मल को शाही का खिताब दिया था।
रंग-बिरंगी टाइल्स की सजावट
मृगेंद्र प्रताप शाही बताते हैं कि सारी टाइल्स बांग्लादेश से मंगवाई गई थी। हरी, सफेद, काली और पीच रंग की खूबसूरत टाइल्स इसकी रेलिंग पर भी लगी हुई है और घर के अंदर भी। इसके अलावा लकड़ी की फ्लो¨रग इसे और भी सुंदर बनाती है। पोर्टिको सतह से काफी ऊंचाई पर बनाया गया है जिसमें दोनों तरफ से प्रवेश द्वार है।
हथुआ राज मेंशन लॉन में हैं कैलिफोर्निया और हॉलैंड के फूल
18 कट्ठे में फैले इस मेंशन का लॉन बिल्कुल विदेशी स्टाइल में बनाया गया है। हरियाली से भरे इस लॉन में जहां झूले और बैठने के लिए जगह बनी है वहीं इसके गार्डेन में करीब 170 प्रजाति के फल और फूल लगे हुए हैं। इसमें हॉलैंड, कैलिफोर्निया की सेलरी, चेरी, लिली, ब्रॉम्थस, पेपर फ्लावर सहित कई प्रजातियां शामिल हैं।
हथुआ राज मेंशन पहले यहां था दिलखुशा भवन
ट्विन टावर के पास बने इस मेंशन का इतिहास काफी रोचक है। यह घर पहले बैरिस्टर अजीज साहब का हुआ करता था जिसका नाम दिलखुशा भवन था। हथुआ महाराज ने 1924 में करीब एक लाख 80 हजार रुपये में यह जमीन खरीदी थी। वर्तमान भवन में करीब 13 कमरे हैं जिनमें डायनिंग, ड्राइंग, ड्रेसिंग और अन्य कक्ष हैं।
हथुआ राज से मंगाई गई विदेशी मूर्तियां
इस कोठी के प्रांगण में घुसते ही आपको हरक्यूलियस की प्रतिमा दिखती है। इसके बाद अंदर जाने पर पोर्टिको में दो अंग्रेजी जमाने की प्रतिमा स्वागत करती हैं। ये प्रतिमाएं 400 साल पुरानी हैं जिसे हथुआ से खास इस कोठी को सजाने के लिए लाया गया था। इन मूर्तियों की खासियत है कि इसे देख कर लगेगा जैसे बोल उठेंगी।
हथुआ राज मेंशन रामभवन है सबसे खास
हथुआ मेंशन के पास ही 1976 में बना रामभवन है। हथुआ राज की यह 107वीं पीढ़ी चल रही है लेकिन यह महल आज भी अपनी तीन हजार साल के इतिहास को समेटे हुए है। इस महल की देखभाल कुछ इस तरह से हुई है कि आज भी यह काफी नया दिखता है। राजदरबार में 400 साल पुराने पियानो से लेकर चाइनीज कलाकृतियां मौजूद हैं।
रामभवन पैलेस के अंदर घुसते ही सर्पीली सीढि़यां दिख जाएंगी। ये सीढि़यां स्प्रिंग पर बनी हुई हैं जिसमें कोई भी पिलर नहीं है। चढ़ने पर स्प्रिंग की तरह उछलने का एहसास देती है।
हथुआ राज मेंशन हॉबी रूम में ट्रेन के साथ चलती हैं बसें
मृगेंद्र प्रताप शाही के हॉबी रूम में हथुआ साम्राज्य के विभिन्न महलों की प्रतिकृति रखी गई है। खूबसूरत डिजाइन में तैयार इस सेंटर में पटना के महल और राजेंद्र नगर टर्मिनल और पाटलिपुत्र स्टेशन का भी नजारा है। यहां सड़कें भी बनीं हैं। पटरी भी बिछी है, जिसपर दौड़ती ट्रेन गुफा से भी गुजरती है।
हथुआ राज मेंशन में जिन्ना और नेहरू ने किया है लंच-डिनर
महल के डायनिंग हॉल में जिन्ना से लेकर जवाहर लाल नेहरू, राजगोपालाचारी, मोरारजी देसाई और राजेंद्र प्रसाद भी खाना खा चुके हैं। इसकी खासियत है कि इसमें खास तौर से चीन के कलाकारों ने इसके शीशे पर पेंटिंग बनाई है जिससे इसकी खूबसूरती देखते बनती है।