क्या है टू फिंगर टेस्ट? What is Two Finger Test -2024

Two Finger Test एक बार फिर चर्चा में है। इस बार मामला मेघालय से जुड़ा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने पोक्सो एक्ट के तहत दोषी व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए मेघालय में दुष्कर्म पीड़िता का टू फिंगर टेस्ट करने पर नाराजगी जाहिर की थी। पोक्सो एक्ट के दोषी ने दावा किया था कि पीड़िता का टू फिंगर टेस्ट किया गया था। इस मामले में मेघालय सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जवाब दिया है कि राज्य में Two Finger Test बैन है। यौन शोषण की शिकार हुई महिला का यह टेस्ट किया जाता है, जिसमें यह पता लगाया जाता है कि पीड़िता सेक्सुअली एक्टिव है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने टू फिंगर टेस्ट को पहले ही बैन कर दिया है। आखिर ये टू फिंगर टेस्ट होता क्या है? जिसे लेकर बवाल मचा हुआ है।

क्या होता है Two Finger Test ?

Two Finger Test एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें पीड़िता के प्राइवेट पार्ट में दो उंगलियां डालकर उसकी वर्जिनिटी टेस्‍ट की जाती है। इसके जरिए डॉक्टर ये पता लगाती है कि महिला यौन रूप से सक्रिय है या नहीं। हालांकि, विज्ञान इस तरह के परीक्षण को पूरी तरह से नकारता है। विज्ञान महिलाओं की वर्जिनिटी में हाइमन के इन्टैक्ट होने को महज एक मिथ मानता है।

क्या कहती है साइंस?

मेडिकल साइंस इस बात पर जोर देती है कि हाइमन का फटना कई कारणों से हो सकता है, जैसे कि खेलकूद, साइकिल चलाना, या फिर टैम्पोन का इस्तेमाल। यह जरूरी नहीं कि हाइमन का फटना सिर्फ सेक्युसली एक्टिव होने की वजह से हो। इसलिए Two Finger Test को किसी भी तरह से वैज्ञानिक प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

केंद्र सरकार भी बता चुकी है अवैज्ञानिक

केंद्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी इस परीक्षण को अवैज्ञानिक बताया है। मार्च 2014 में, मंत्रालय ने रेप पीड़ितों की देखभाल के लिए नई गाइडलाइंस जारी की, जिसमें सभी अस्पतालों से फोरेंसिक और मेडिकल जांच के लिए एक विशेष कक्ष बनाने को कहा गया और Two Finger Test पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया।

नई गाइडलाइंस में हमले के इतिहास को रिकॉर्ड करने, पीड़िता की शारीरिक जांच करने और उन्हें उचित परामर्श प्रदान करने पर जोर दिया गया है। महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंसेज (MUHS) ने दूसरे वर्ष के मेडिकल छात्रों को पढ़ाए जाने वाले ‘फॉरेंसिक मेडिसिन एंड टॉक्सिकोलॉजी’ विषय के सिलेबस में बदलाव किया है और ‘साइंस ऑफ वर्जिनिटी’ विषय को हटा दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने भी टेस्ट पर लगाया है बैन

सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में लिलु राजेश बनाम हरियाणा राज्य के मामले में टू-फिंगर टेस्ट को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। अदालत ने इसे रेप पीड़िता की निजता और सम्मान का हनन करने वाला बताया था। कोर्ट ने कहा था कि यह टेस्ट शारीरिक और मानसिक पीड़ा देने वाला है और यह यौन हिंसा के इतिहास का पता लगाने का कोई विश्वसनीय तरीका नहीं है। भले ही यह टेस्ट पॉजिटिव आ जाए, तो भी यह नहीं माना जा सकता है कि संबंध सहमति से बने थे।

सुप्रीम कोर्ट के बैन लगाने के बावजूद भी इस टेस्ट का कई मामलों में इस्तेमाल होता रहा है। 2019 में, 1,500 से ज्यादा रेप पीड़ितों और उनके परिवार के सदस्यों ने अदालत में शिकायत की कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद यह टेस्ट कराया जा रहा है। याचिका में इस टेस्ट को करने वाले डॉक्टरों के लाइसेंस रद्द करने की मांग की गई थी। संयुक्त राष्ट्र भी इस तरह के परीक्षण को मान्यता नहीं देता है।

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