नाबालिग पत्नी: सुप्रीम कोर्ट में एक गरीब महिला की दिल दहला देने वाली कहानी सामने आई है. यह महिला पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गांव में रहती है. इस महिला ने अपने पति को बचाने के लिए कानूनी व्यवस्था में अपनी जिंदगी की पूरी कमाई गंवा दी.
उसने पति की रिहाई के लिए 3.5 लाख रुपये खर्च किए और भारी कर्ज में डूब गई. यह कहानी न केवल उसकी पीड़ा को दर्शाती है, बल्कि कानूनी व्यवस्था की खामियों को भी उजागर करती है, जो गरीबों और अनजान लोगों का शोषण करती है. यह महिला एक टूटी-फूटी झोपड़ी में रहती है,
जहां छत के नाम पर तिरपाल है. घर में दरवाजा तक नहीं है. उसके पति को पॉक्सो एक्ट के तहत 20 साल की सजा सुनाई गई है. क्योंकि पुरुष ने अपनी पत्नी के साथ तब शारीरिक संबंध बनाया था जब वह नाबालिग थी.
अपने पति को जेल से छुड़ाने के लिए उसने निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक की लंबी लड़ाई लड़ी. इस दौरान उसे कई बार ठगा गया. उसने वकीलों को मोटी रकम दी. एक दलाल को जमानत का वादा करने के लिए पैसे दिए और कोर्ट के कागजातों के लिए भी भारी खर्च किया.
सुप्रीम कोर्ट ने जांच के लिए कमेटी बनाई – नाबालिग पत्नी
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस अभय एस. ओका और उज्जल भुइयां ने इस मामले की जांच के लिए एक कमेटी बनाई. कमेटी की रिपोर्ट में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए. महिला ने बताया कि उसने वकीलों को 40,000 रुपये दिए. एक वकील को केस जीतने के लिए 10,000 रुपये दिए.
चार्जशीट की कॉपी के लिए 20,000 रुपये और कोर्ट के कागजात की डुप्लीकेट कॉपी के लिए 7,000 रुपये खर्च किए. एक दलाल को जमानत दिलाने के वादे में 18,000 रुपये दिए. निचली अदालत में उसका कुल खर्च 2 लाख रुपये से ज्यादा हो गया, जो उसने कर्ज लेकर चुकाया. हाईकोर्ट में केस लड़ने के लिए उसे 1.4 लाख रुपये और खर्च करने पड़े. वह भाग्यशाली रही कि सुप्रीम कोर्ट में दो वरिष्ठ वकीलों ने मुफ्त में उसकी मदद की, तब जाकर उसका खर्च कुछ कम हुआ.
नाबालिग पत्नी – संबंधित खबरें
कोर्ट ने कहा कि यह महिला शोषण का शिकार हुई. उसे जमानत के लिए 60,000 रुपये, केस जीतने के लिए 25,000 रुपये, सुप्रीम कोर्ट में केस दाखिल करने के लिए 15,000 रुपये और वकील के हवाई यात्रा के लिए 25,000 रुपये देने पड़े. उसका परिवार इतना गरीब है कि उनके पास पक्का घर तक नहीं. उनकी झोपड़ी की दीवारें ईंट की हैं, लेकिन छत तिरपाल की है और दरवाजा तक नहीं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह मामला सब के लिए आंखें खोलने वाला है. इसने कानूनी व्यवस्था की खामियों को उजागर किया, जिसने इस महिला के साथ अन्याय किया. कोर्ट ने माना कि समाज, परिवार और कानूनी व्यवस्था ने मिलकर इस महिला को ठगा.